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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह, पांचवां भाग
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(४) राजीमती
___रघुवंश तथा यदुवंशभारतवर्ष की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता
के उत्पत्तिक्षेत्र थे। उन्हीं का वर्णन करके संस्कृत कवियों ने अपनी लेखनी को अमर बनाया। उन्हीं दो गिरिशृङ्गों से भारतीय साहित्य गंगा के दिव्य स्रोत बहे।
जिस प्रकार रघुवंश के साथ अयोध्या नगरीकाअमर सम्बन्ध है उसी प्रकार यदुवंश के साथ द्वारिका नगरीका । रघुवंश में राम सरीखे महापुरुष और सीता सरीखी महासतियाँ हुई और यदुवंशकामस्तक भगवान् अरिष्टनेमि तथा महासतीराजीमती सरीखी महान् भात्माओं के कारण गौरवोन्नत है। __उसी यदुवंश में श्रन्धकवृष्णि और भोजष्णि नाम के दो प्रतापी राजा हुए। अन्धकवृष्णिशौरिपुर में राज्य करते थे और भोजवृष्णि मथुरा में। महाराज अन्धकप्णि के समुद्रविजय, वसुदेव भादि दस पुत्र थे जिन्हें दशाह कहा जाताथा। उनमें से सबसे बड़े महाराज समुद्रविजय के पुत्र भगवान् अरिष्टनेमि हुए । इनकी माता का नाम शिवादेवी था।महाराज वसुदेव के पुत्र कृष्ण वासुदेव हुए। इनकी माता का नाम देवकी था। भोजवृष्णि के एक भाई मृत्तिकावती नगरी में राज्य करते थे। उनके पुत्र का नाम देवकथा। देवकी इनकी पुत्री थी। भोजदृष्णि के पुत्र महाराज उग्रसेन हुए। उग्रसेन की रानी धारिणी के गर्भ सेराजीमती का जन्म हुआथा। राजीमती रूप, गुण औरशील सभी में अद्वितीय थी।
धीरे धीरे वह विवाह योग्य हुई। माता पिता को योग्य वर की चिन्ता हुई। वे चाहते थे, राजीमती जैसी सुशील तथा मुन्दर है उसके लिए वैसा ही वर खोजना चाहिए। इसके लिए उन्हें