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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
ने और भी कठोर दण्ड देने का निश्चय किया। चन्दनपाला के सारे कपड़े उतार लिए और पुराने मैले कपड़े की एक काछ लगा दी। हाथों में हथकड़ी और पैरों में वेड़ी डाल दी। इसके बाद एक पुराने भौरे (तहखाने,तलघर) में उसे बन्द करके तालालगा दिया। मला को विश्वास हो गया कि चन्दनवाला वहीं पड़ी पड़ी मर जाएगी। उसे यह जान कर प्रसन्नता हुई कि सौत बन कर उसके सुख सुहाग में बाधा डालने वाली अब नहीं रही।
इतने में उसके हृदय में भय का संचार हुआ। सोचने लगीअगर कोई यहाँ आगया और चन्दनवाला के विषय में पूछने लगा तो क्या उत्तर दिया जाएगा ? मकान के तालावन्द करके वह अपने पीहर चली गई। सोचा-तीन चार दिन तो यह बात ढकी ही रहेगी, वाद मैं कह दूँगी कि वह किसी के साथ भाग गई। __ भौरे में पड़े पड़े चन्दनवाला को तीन दिन हो गए। उस समय उसके लिए भगवान् के नाम का ही एक मात्र सहारा था। वह नवकार मन्त्र का जाप करने लगी। उसी में इतनी लीन थी कि भूख प्यास आदि सभी कष्टों को भूल गई। नवकार मन्त्र के स्मरण में उसे अपूर्व आनन्द प्राप्त हो रहा था। मूला सेठानी को वह धन्यवाद दे रही थी जिसकी कृपा से ईश्वरभजन काऐसा सुयोग मिला। · चौथे दिन दोपहर के समय धनावह सेठ वाहर से लौटे। देखा, घर का वाला बन्द है। सेठानी या नौकर चाकर किसी का पता नहीं है। सेठजी आश्चर्य में पड़ गए। उनके घर का द्वार कभी बन्द न होता था। अतिथियों के लिए सदा खुला रहता था।
सेठ ने सोचा-मूला अपने पीहर चली गई होगी। नौकर चाकर भी इधर उधर चले गए होंगे, किन्तु चन्दनवाला तो कहीं नहीं जा सकती। पड़ोसियों से पूछने पर मालूम पड़ा कि तीन दिन से उसका कोई पता नहीं है। इतने में एक नौकर बाहर से आया। पूछने पर