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श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पांचवां भाग
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उसने कहा- सेठानी ने हम सब को बाहर भेज दिया था। केवल चन्दनपाला और सेठानी ही यहाँ रही थीं। इसके बाद क्या हुआ, यह मुझे मालूम नहीं है। सेठ मूला के स्वभाव की मलीनताऔर उसकी चन्दनवाला के प्रति दुर्भावना से परिचित थे। अनिष्ट की सम्भावना से उनका हृदय कांप उठा। . : धनावह सेठ ने मूला के पास नौकर भेजा। सेठ का आगमन सुन कर एक बार तो मूला का हृदय धक सा रह गया किन्तु जल्दी
कर उसने नौकर से कहा मुझे अभी दो चार दिन यहाँ काम है। तुम घर की चाबी ले जाओ और सेठजी को दे दो। मूला ने सोचा-दो चार दिन में चन्दनवाला मर जायगी फिर उसका कोई भी पता न लगा सकेगा। पूछने पर कह दूँगी, घर से चोरी करके वह किसी पुरुष के साथ भाग गई। .. नौकर चाबी ले कर चला आया। सेठ ने घर खोला। चन्दनबाला जब कहीं दिखाई न दी तो उसका नाम ले कर जोर जोर से पुकारना शुरू किया।
चन्दनबाला ने सेठ की आवाज पहिचान कर तीण स्वर से उत्तर दिया- पिताजी! मैं यहाँ हूँ। आवाज के अनुसन्धान पर सेठ धीरे धीरे भौरे के पास पहुँच गया । किवाड़ खोल कर अंधेरे में टटोलता हुआ वह चन्दनवाला के पास आ पहुँचा। यह जान कर वह बड़ा दुखी हुआ कि चन्दनवाला के हथकड़ी और बेड़ियाँ पड़ी हुई हैं। धीरे धीरे उसे उठाया और भौंरे से बाहर निकाला। चन्दनबाला के मुंडे हुए सिर, शरीर पर लगी हुई काछ हथकड़ियों से जकड़े हुए हाथ तथा वेड़ियों से कसे हुए पैर देख कर सेठ के दुःख की सीमा न रही। वह जोर जोर से रोने लगा। विलाप करते हुए उसने कहा-वह दुष्टा तो तेरे प्राण हीले चुकी थी। मेरा भाग्य अच्छा था, जिससे तुझे नीवित देख सका। मैं