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थ्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
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चम्पा नगरी के पास पहुँचने पर उसे मालूम पड़ा कि दधिवाहन की सेना सामना करने के लिए तैयार खड़ी है। शतानीक ने भी अपनी सेना को युद्ध की आज्ञा दे दी। दोनों सेनाओं में घमासान संग्राम छिड़ गया।दधिवाहन की सेना बड़ी वीरता से लड़ी किन्तु, शतानीक की सेना के सामने मुट्ठी भर बिना नायक की फौज.. कितनी देर ठहर सकती थी। शतानीक की सेना से परास्त होकर उसे रणभूमि छोड़ कर भागना पड़ा।
चम्पानगरी के दरवाजे तोड़ दिए गए। शतानीफ की सेना । लूट मचाने लगी। सारे नगर में हाहाकार मच गया। सैनिकों का । विरोध करना साक्षात् मृत्युथी। पाशविकता का नग्न ताण्डव होने लगा किन्तु उसे देख कर शतानीक प्रसन्न हो रहा था। राक्षसी वृत्ति अपना भीषण रूप धारण करके उसके हृदय में पैठ चुकी थी।
चम्पापुरी में एक ओर तो यह नृशंस काण्ड हो रहा था दूसरी ओर महल में बैठी हुई महारानी धारिणी वसुमती को उपदेश दे रही थी। दधिवाहन का राज्य छोड़ कर चले जाना, अपनी सेना का हार-जाना, शतानीक के सैनिकों कानगरी में प्रवेश तथा लूट मार आदि सभी घटनाएं धारिणी को मालूम हो चुकी थीं किन्तु उसने धैर्य नहीं छोड़ा। सेवकों ने आकर खवर दी कि राजमहल भी सिपाहियों द्वारा लूटा जाने वाला है, किन्तु धारिणी ने फिर भी धैर्य नहीं छोड़ा। वह वसुमती को कहने लगी-वेटी! तेरे स्वप्न का एक भाग तो मत्य हो रहा है। चम्पापुरी दुःखसागर में डूबी हुई है। तेरे पिता वन मे चले गए हैं। यह समय हमारी परीक्षा का है। इस समय घबराना ठीक नहीं है। धर्म यह सिखाता है कि भयङ्कर विपत्ति को भी अपने कर्मों का फल समझ कर धैर्य रखना चाहिए। ऐसे समय में धैर्य त्याग देने वाला कभी जीवन में सफल , नहीं हो सकता। अब स्वप्न का दसराभाग सत्य करने का उत्तर