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मी जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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इसकी अधीनता स्वीकार की गई तो इसका परिणाम और भी भयङ्कर होगा। इसके भादेशानुसार मुझे प्रजा पर अन्याय करना पड़ेगा और हर तरह से इसकी इच्छाओं को पूरा करना पड़ेगा। जिस प्रजा की रक्षा के लिए मैं इतना उत्सुक हूँ फिर उसी पर अत्याचार करना पड़ेगा।
वन जाने का निश्चय करके घोड़े पर सवार होते हुए दधिवाहन ने कहा- यदि आपकी इच्छा चम्पा पर राज्य करने की है तो आप सहर्ष कीजिए। अब तक चम्पापुरी की मजा का पालन मैंने किया अब आप कीजिए। मैं सोचा करता था-वृद्ध हुआ हूँ, कोई पुत्र नहीं है, राज्य का भार किसे सौंपंगा! मापने मुझे चिन्तामुक्त कर दिया। यह मेरे लिए प्रसमता की बात है। यह कहकर दधिवाहन घोड़े पर बैठ कर वन को चला गया। - अपने राज्य की सीमा पर पहुँच कर उसने अपने मन्त्रियों के पास खबर भेज दी-शतानीक की सेना बहुत पड़ी है। उससे लड़ कर अपनी सेना तथा प्रजा का व्यर्थ संहार मत कराना । अब तक चम्पा की रक्षा मैंने की थी। अब शतानीक अपने ऊपर रक्षाका भार लेना चाहता है इस लिए मेरी जगह उसी को राजा मानना।
प्रधान मन्त्री को राजा की बात अच्छी न लगी। उसने सब मन्त्रियों की एक सभा करके निश्चय किया कि चम्पा नगरी का राज्य इस प्रकार सरलता पूर्वक शतानीक के हाथ में सौंपना ठीक नहीं है। युद्ध न करने पर सेना का क्या उपयोग होगा? उसने युद्ध की घोषणा कर दी।
दधिवाहन के चले जाने पर शतानीक के हर्ष का पारावार न रहा। विना युद्ध के प्राप्त हुई विजय पर वह फूल उठा। उसने चम्पानगरी में तीन दिन तक लूट मचाने के लिए सेना को छुट्टी दे दी। शतानीक की सेना लूट की खुशी में चली आ रही थी।