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श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह, पांचवां भाग
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छोड़ी थी। युद्ध या किसी के भाक्रमण कोरोकने के लिए सैनिक शक्ति को बढ़ाना उसकी दृष्टि में व्यर्थ था, इसी से शतानीक का उत्साह बहुत बढ गयाथा। दधिवाहन की मुही भर सेना कोहरा कर चम्पापुरी पर अधिकार जमा लेने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई न जान पड़ती थी।
शतानीफ ने किसी मामूली सी पात को लेकर चम्पापुरी पर चढ़ाई कर दी। दधिवाहन को इस बात का स्वम में भी खयाल न था कि कोई राजा उस पर भी चढ़ाई कर सकता है। युद्ध की घोषणा करती हुई शतानीक की सेनाचम्पा के राज्य में घुस गई और मना को सताने लगी। सीमा की रक्षा करने वाले दधिवाहन के थोड़े से सिपाही उसका सामना न कर सके । वे दौड़े हुए दधिवाहन के पास भाए और चढ़ाई का समाचार सुनाया। शतानीक की सेनाद्वारासताई गई प्रजा ने भीराजादधिवाहन के पास पुकार की।
दधिवाहन इस अप्रत्याशित समाचार को मुन कर विचार में पड़गया। उसने अपने मन्त्रियों की सभाबुलाई और कहा-मित्रतापूर्ण सन्धि होने पर भी शतानीक ने चम्पा पर चढ़ाई कर दी है। हमारे खयाल में अभी कोई भी ऐसा कारण उपस्थित नहीं हुआ जिससे शतानीक के आक्रमण को उचित कहा जा सके। अव यह विचार करना है कि शतानीक ने चढ़ाई क्यों की और इस समय हमें क्या करना चाहिए?
प्रधानमन्त्री- इस समय ऐसा कोई भी कारण उपस्थित नहीं हुआ जिससे शतानीक को चढ़ाई करनी पड़े। शतानीक चम्पापुरीको हड़पने की दुर्भावना से प्रेरित होकर पाया है। उसे किसी दूसरे कारण की आवश्यकता नहीं है। ऐसा व्यक्ति साधारण सी बात को युद्ध का कारण बना सकता है। चम्पापुरी पर चढ़ाई करने के लिए शतानीक ऐसी चालें बहुत दिनों से चल रहा था।