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।। श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
इसके लिए मैंने भाप से पहले भी निवेदन किया था। हम लोगों ने सदा शान्ति के लिए प्रयत्न किया किन्तु वह हमारी इस इच्छा को कायरता समझता रहा। अव एक ही उपाय है कि शत्रु का सामना करके उसे बता दिया जाय कि चम्पा पर चढ़ाई कोई हँसी खेल नहीं है। जब तक शत्र को पराजित न किया जाएगा वह मानने का नहीं। शान्ति की बातों से उसका उत्साह दुगुना बढ़ता है। दूसरे मन्त्रियों ने भी युद्ध करने की ही सलाह दी। .. मन्त्रियों की बात सुनकर राजा कहने लगा-वर्तमान रोज। नीति के अनुसार तो हमें युद्ध ही करना चाहिए, किन्तु इसके ५, भयङ्कर परिणाम पर भी विचार करना आवश्यक है। शतानीक ने ., राज्य के लोभ में पड़ कर आक्रमण किया है। लोभी न्याय और
अन्याय को भूल जाता है। अगर हम उसका सामना करें तो व्यर्थ
ही लाखों मनुष्य मारे जाएंगे। अगर चम्पा का राज्य छोड़ देने पर , यह नरहत्या वचजाय तोक्यों इस भयङ्कर पापको किया जाय ?' .. मन्त्री-महाराज! शत्र द्वारा आक्रमण हो जाने पर धर्म की
बातें करना कायरता है। ऐसे मौके पर क्षत्रिय का यह कर्तव्य है , कि शत्र का सामना करे। . .।' । राजा- क्षत्रिय का धर्म युद्ध करना नहीं है। उसका धर्मन्याय
पूर्वक प्रजा की रक्षा करना है। अन्याय और अधर्म को हटाने के लिए जो अपने प्राणों को भी त्याग सकता है वही असली क्षत्रिय है। तात्रत्व हिंसा में नहीं है किन्तु अहिंसा में है। यदि शतानीक को न्याय और नीति के लिए समझाया जाय तो सम्भव है, वह मान जाय। इसके लिए हमें प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए मैं खयं शतानीक के पास जाऊँगा। .
मन्त्रियों के विरोध करने पर भी दधिवाहन ने शतानीक के पास अकेले जाने का निश्चय कर लिया।