________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
Avo
करने नहीं गए।
वन में ध्यान लगा कर खड़े खड़े उन्हें एक वर्ष बीत गया। पक्षियों ने कन्धों पर घोंसले बना लिए। लताएं रत की तरह चारों भोर लिपट गई । सिंह, व्याघ्र, हाथी तथा दूसरे जंगली जानवर गुरोते हुए पास से निकल गए किन्तु वे अपने ध्यान से विचलित न हुए । काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि माभ्यन्तर शत्रु उनसे हार मान गए किन्तु अहंकार का कीड़ा उनके हृदय से न निकला। छोटे भाइयों को वन्दना न करने का अभिमान उन के मन में अभी जमा हुआ था। इसी अभिमान के कारण उन्हें केवलझान नहीं हो रहा था। __ भगवान् ऋषभदेव ने अपने ज्ञान द्वारा बाहुवली का यह हाल जाना।उन्होंने वाली और सुन्दरी को बुलाकर कहा-तुमारे भाई बाहुवली अभिमान रूपी हाथी पर चढ़े हुए हैं। हाथी पर चढ़े केवलज्ञान नहीं हो सकता। इस लिए जामो भौर अपने भाई को अहंकार रूपी हाथी से नीचे उतारो।
भगवान् की आज्ञा को प्राप्त कर दोनों सतियाँ बाहुबली के पास पाई और कहने लगीं
वीरा म्हारा गज थकी हेठा उतरो. गज चढ्या केवल न होसी रे।।टेक। बन्धव गज थकी उतरो, ब्राझी सुन्दरी इम भाषे रे । ऋषभ जिनेश्वर मोकली, बाहुबल तुम पासे रे॥ लोम तजी संयम लियो, प्रायो बली अभिमानो रे। लघु बन्धव पन्दू नहीं, काउसग्ग रह्यो शुभ ध्यानो रे॥ बरस दिवस काउसग रमा, बेलड़ियां लिपटानी रे । पंछी माला मांडिया, शीत ताप सुखानी रे ।। भाई बाहुवली ! भगवान् ने अपना सन्देश सुनाने के लिए