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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
इतने में इन्द्र ने स्वर्ग से आकर कहा- तुम लोगव्यर्थ सेना का संहार क्यों कर रहे हो? अगर तुम्हें लड़नाही है तो तुम दोनों पञ्चयुद्ध करो। दोनों भाइयों ने इन्द्र की बात को मान लिया। सेनामों द्वारालड़ने से होने वाले रक्तपात कोव्यर्थसमझ कर पाँच प्रकार सेमल्लयुद्ध करने का निश्चय किया। पहले के चार युद्धों में वाहुबली की जीत हुई. फिरमुष्टियुद्ध की वारीआई। बाहवली की भजाभों में बहुत बल था। उसे अपनी विजय पर विश्वास था । भरत के मुष्टिप्रहारको उसने समभाव सेसह लिया। इसके बाद स्वयं प्रहार करने के लिए मुष्टि उठाई। उसी समय शक्रेन्द्र ने उसे पकड़ लिया और वाहुवली से कहा- बाहुवली! यह क्या कर रहे हो! बड़े भाई पर हाय चलाना तुम्हें शोभा नहीं देता। तुच्छ राज्य के लिए क्रोध के वशीभूत होकर तुम कितना बड़ा अनर्थ कर रहे हो, यह मन में सोचो। __ बाहुवली की मुहि उठी की उठी ही रह गई। उनके मन में पश्चात्ताप होने लगा। वे मन में सोचने लगे-'जिस राज्य के लिए इस प्रकार का अनर्थ करना पड़े वह कभी मुखदायक नहीं हो सकता । इस लिए इसे छोड़ देना ही श्रेयस्कर है। वास्तविक मुख तो संयम से प्राप्त हो सकता है। यह सोचकर उन्होंने संयमलेने का निश्चय कर लिया।
उठाई हुई मुहिकोवापिस लेना भनुचित समझकर बाहुबली उसी मुहि द्वारा अपने सिर का पंचमुष्टि लोच करके वन में चले गए। वहाँ जाकर ध्यान लगा लिया। अभी तक उनके हृदय से भभिमान दर न हुआ था। मन में सोचा- मेरे छोटे भाइयों ने भगवान् के पास पहले से दीक्षा ले रक्स्वी है । उन्हें केवलकाल भी हो गया है यदि मैं अभी भगवान के दर्शनार्य गया तोउन्हें भी वन्दना करनी पड़ेगी। यह सोच कर वे भगवान् को वन्दना