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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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८७५- सतियाँ सोलह
अपने सतीत (पतिव्रत) तथा दूसरे गुणों के कारण जिन महिलाभों ने स्त्री समाज के सामने महान् आदर्श रक्खा है उन्हें सती कहा जाता है। उन्होंने बाल्यावस्था में योग्य शिक्षा, यौवन में पतिव्रत या पूर्ण ब्रह्मचर्य और अन्त में संयम ग्रहण करके अपने जीवन को पूर्ण सफल बनाया है। सतील की कठोर परीक्षाओं में वे पूर्ण सफल हुई हैं। इन सतियों में भी सोलह प्रधान मानी गई हैं। उन का नाम पवित्र और मङ्गलमय समझकर प्रातःकाल स्मरण किया जाता है। इहलोक और परलोक दोनों में सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए नीचे लिखा श्लोक पढ़ा जाता हैब्राह्मी चन्दनघालिका भगवती राजीमती द्रौपदी । कौशल्या चमृगावती चसुलसासीतासुभद्रा शिवा॥ कुन्ती शीलवती नलस्य दयिताचूला प्रभावत्यपि । पद्मावत्यपि सुन्दरी प्रतिदिन कुर्वन्तु नो मङ्गलम् ॥ अर्थात्- ब्राह्मी, चन्दनवाला, राजीमती, द्रौपदी, कौशल्या, मृगावती, सुलसा, सीता, सुभद्रा, शिवा, कुन्ती, दमयन्ती, चूला, प्रमावती, पद्मावती और सुन्दरी प्रतिदिन हमारामङ्गाल करें।
उपरोक्त सोलह सतियों का संक्षिप्त जीवन चरित्र नीचे लिखे अनुसार है
(१) ब्राह्मी महाविदेह क्षेत्र में पुंडरीकिणी नाम की नगरी थी । वहाँ वैर नाम का चक्रवर्ती राजा राज्य करता था । उसने अपने चार छोटे भाइयों के साथ भगवान् वैरसेन नाम के तीर्थङ्कर के पास वैराग्य पूर्वक दीक्षा अंगीकार की।
महामुनि वैर कुछ दिनों में शास्त्र के पारंगत हो गए। भगवान्