________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
नीच कुल में उत्पन्न हो जाते हैं। वहाँ उन्हें धर्मक्रिया करने की यथासाध्य सामग्री प्राप्त नहीं होती । इस लिये आर्य देश के पश्चात् उत्तम कुल का मिलना बड़ा मुश्किल है।
(६) उत्तम जांति--पितृपक्ष कुल और मातृपक्ष जाति कहलाता है । विशुद्ध एवं उत्तम जाति का मिलना भी बहुत कठिन है
4
(७) रूपसमृद्धि - आँख, कान आदि पाँचों इन्द्रियों की पूर्णता रूपसमृद्धि कहलाती है । सारी सामग्री मिल जाने पर भी यदि पाँचों इन्द्रियों की पूर्णता नं हो अर्थात् कोई इन्द्रिय हीन हो तो धर्म का यथावत् आराधन नहीं हो सकता । श्रोत्रेन्द्रिय में किसी प्रकार की हीनता होने पर शास्त्र श्रवण का लाभ नहीं लिया जा सकता । चचुरिन्द्रिय में हीनता होने पर जीवों के दृष्टि गोचर न होने से उनकी रक्षा नहीं हो सकती । शरीर के हाथ पैर आदि अवयव पूर्ण न होने से तथा शरीर के पूर्ण स्वस्थ न होने से भी धर्म का सम्यक् आराधन नहीं हो सकता। इस लिए पाँचों इन्द्रियों की पूर्णता का प्राप्त होना भी बहुत कठिन है ।
(८) वल ( पुरुषार्थ) - उपरोक्त सारी सामग्री प्राप्त हो जाने पर भी यदि शरीर में बल न हो तो त्याग और तप कुछ भी नहीं हो सकता । अतः शरीर में सामर्थ्य का होना भी परमावश्यक है।
१२२
(६) जीवित - बहुत से प्राणी जन्म लेते ही मर जाते हैं या अन्यवय में ही मर जाते हैं । लम्वी आयुष्य मिले विना प्राणी धर्म क्रिया नहीं कर सकता । अतः जीवित अर्थात् दीर्घ आयु का मिलना भी मोक्ष का अंग है ।
(१०) विज्ञान - लम्बी आयुष्य प्राप्त करके भी बहुत से जीव विवेकविफल होते हैं । उन्हें सद् असद् एवं हिताहित का ज्ञान नहीं होता इसी लिये जीवादि नव तत्त्व के ज्ञान के प्रति उनकी रुचि नहीं होती । नव तत्त्वों का यथावत् ज्ञान कर आत्महित की