________________
श्री जैन सिद्धान्त योल संग्रह, पांचवा भाग १२३ ~r mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. ओर प्रवृत्ति करना ही सच्चा विज्ञान है ।
(११) सम्यक्त-सर्वेश द्वारा प्ररूपित पारमार्थिक जीवाजीवादि पदार्थों पर श्रद्धान करना सम्यक्त है। सम्यक्समाप्ति के बिना जीव को मोक्ष पद की प्राप्ति नहीं होती।
(१२)शील सम्माप्ति- बहुत से जीव सम्यक्त प्राप्त करके भी चारित्र प्राप्त नहीं करते। चारित्र प्राप्ति के विना जीव मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। विज्ञान,सम्यक्त और शील सम्माप्ति अर्थात सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीनों मोक्ष के प्रधान अंग हैं। श्री उमास्वाति आचार्य ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है कि'सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः'
अर्थात्- सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीनों मिल कर मोक्ष का मार्ग हैं । इन तीनों की प्राप्ति होना अत्यन्त दुर्लभ है।
(१३) क्षायिक भाव- कर्मों के सर्वथा क्षय होने पर प्रकट होने वाला परिणाम क्षायिक भाव कहलाता है। बहुत से जीव चारित्र प्राप्त करके भी क्षायिक भाव प्राप्त नहीं करते। नायिक भाव के नौ भेद हैं-(१) केवलज्ञान (२) केवल दर्शन (३) दान लब्धि (४) लाभ लब्धि (५) भोग लब्धि (६)उपभोगलब्धि (७) वीर्य लब्धि (E) सम्यक्त (8) चारित्र । चार सर्वघाती कर्मों के तय होने पर ये नौ भाव प्रकट होते हैं। ये नौसादिअनन्त हैं।
(१४) केवलज्ञान- क्षायिक भाव की प्राप्ति के पश्चात् घाती कर्मों का सर्वथा तय हो जाने पर केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है। केवलज्ञान हो जाने पर जीव सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो जाता है।
(१५) मोक्ष-आयुष्य पूर्ण होने पर अव्यावाध मोक्ष सुख की प्राप्ति हो जाती है।
उपरोक्त पन्द्रह मोक्ष के अङ्ग (उपाय) हैं। इन में से बहुत से अंग इस जीव को प्राप्त हो गये हैं। इस लिये अब शील सम्प्राप्ति