________________
श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग mmmmmmmmwww तो वे अकेले विचर सकते हैं अन्यथा गच्छ में रहते हैं। प्रत्येक बुद्ध को पूर्व जन्म का ज्ञान इस जन्म में अवश्य उपस्थित होता है। वह ज्ञान जघन्य ग्यारह अङ्गका और उत्कृष्ट किञ्चिदून (कुछ कम)दस पूर्व का होता है । दीक्षा लेते समय देवता उन्हें लिङ्ग (वेश) देते हैं अथवा वे लिङ्ग रहित भी होते हैं।
(७) बुद्ध बोद्धित सिद्ध-प्राचार्यादि के उपदेश से बोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले बुद्ध बोधित सिद्ध कहलाते हैं ।
(८) स्त्रीलिङ्ग सिद्ध-स्त्रीलिङ्ग से मोक्ष जाने वाले स्त्रीलिङ्ग सिद्ध कहलाते है। यहॉ स्त्रीलिङ्ग शब्द स्त्रीत्व का सूचक है। स्त्रीत्व (स्त्रीपना) तीन प्रकार का बतलाया गया है- (क) वेद (ख) शरीराकृति और (ग)वेश। यहाँ पर शरीराकृति रूप स्त्रीत्व लिया गया है क्योंकि वेद के उदय में तो कोई जीव सिद्ध हो नहीं सकता
और वेशअप्रमाण है,अतः यहाँशरीराकृतिरूप स्त्रीत्व की ही विवक्षा है। नन्दी सूत्र में चूर्णिकार ने भी लिखा है कि स्त्री के आकार में रहते हुए जो मोक्ष गये हैं वे स्त्रीलिङ्ग सिद्ध कहलाते हैं।
(8) पुरुपलिङ्ग-पुरुष की आकृति रहते हुए मोक्ष में जाने वाले पुरुषलिङ्ग सिद्ध कहलाते हैं।
(१०) नपुंसक लिङ्ग सिद्ध- नपुंसक की आकृति में रहते हुए मोक्ष जाने वाले नपुंसक लिङ्ग सिद्ध कहलाते हैं।
(११) स्खलिङ्ग सिद्ध-साधुके वेश (रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि) में रहते हुए मोक्ष जाने वाले स्वलिङ्ग सिद्ध कहलाते हैं।
(१२) अन्यलिङ्ग सिद्ध-परिव्राजक आदि के वल्कल, गेरुए वस्त्र आदि द्रव्य लिङ्ग में रह कर मोक्षजाने वाले अन्यलिङ्ग सिद्ध कहलाते हैं।
(१३) गृहस्थलिङ्ग सिद्ध- गृहस्थ के वेश में मोक्ष जाने वाले गृहस्थलिङ्ग (गृहीलिङ्ग) सिद्ध कहलाते हैं,जैसे मरुदेवी माता।