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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला wwwwwwwwmmmmmwwwimmmnx. im . ~ wwwr rrrr .orm
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वोध प्राप्त कर मोक्ष जाने वाले स्वयंबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं।
(६) प्रत्येकबुद्ध सिद्ध-- जो किसी के उपदेश के बिना ही किसी एक पदार्थ को देख कर दीक्षा धारण करके मोक्ष जाते हैं वे प्रत्येक बुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। __ स्वयंबुद्ध और प्रत्येक बुद्ध दोनों प्रायः एक सरीखे होते हैं, सिर्फ थोड़ी सी परस्पर विशेषताएं होती हैं। वे ये हैं- वोधि, उपधि, श्रुत और लिङ्ग (बाह्य वेष)।
(क) बोधिकृत विशेषता-स्वयंबुद्ध को बाहरी निमित्तकै विना ही जातिस्मरण आदि ज्ञान से वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। स्वयंबुद्ध दो तरह के होते हैं- तीर्थङ्कर और तीर्थङ्कर व्यतिरिक्त । यहाँ पर तीर्थङ्कर व्यतिरिक्त लिये जाते हैं क्योंकि तीर्थङ्कर स्वयंबुद्ध तीर्थङ्कर सिद्ध में गिन लिये जाते हैं। प्रत्येक बुद्ध को वृषभ (बैल)मेघ श्रादि बाहरी कारणों को देखने से वैराग्य उत्पन्न होता है और दीक्षा लेकर वे अकेलेही विचरते है।।
(ख) उपधिकृत विशेषता- स्वयंवुद्ध वस्त्र पात्र आदि बारह प्रकार की उपधि (उपकरण) वाले होते हैं और प्रत्येक बुद्ध जघन्य दो प्रकार की और उत्कृष्ट नौ प्रकार की उपधि वाले होते हैं । वे वस्त्र नहीं रखते किन्तु रजोहरण और मुखव स्त्रिका तो रखते ही हैं। __ (ग-घ) श्रुत और लिङ्ग (बाह्य वेश) की विशेषता- स्वयंबुद्ध दो तरह के होते हैं । एक तो वे जिनको पूर्व जन्म का ज्ञान इस जन्म में भी उपस्थित हो पाता है और दूसरे वे जिनको पूर्व जन्म का ज्ञान इस जन्म में उपस्थित नहीं होता। पहले प्रकार के स्वयंबुद्ध गुरु के पास जाकर लिग (वेश) धारण करते हैं और नियमित रूप से गच्छ में रहते हैं। दूसरे प्रकार के स्वयंबुद्ध गुरु के पास जाकर वेश स्वीकार करते हैं अथवा उनको देवता वेश दे देता है। यदि वे अकेले विचरने में समर्थ हों और
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