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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
rrrrrrrrrrrrrrrrrrr नामकर्म (३०) सातावेदनीय या असातावेदनीय (इन दोनों में से कोई एक)। इनका उदय चौदहवें गुणस्थान में नहीं होता इस लिए चौदहवें गुणस्थान में केवल १२ प्रकृतियों का उदय होता है। वे बारह प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं- (१) सुभग नामकर्म (२) प्रादेय नामकर्म (३) यशःकीर्ति नामकर्म (४) वेदनीय कर्म की दो प्रकृतियों में से कोई एक (५) त्रस नामकर्म (६) बादर नामकर्म (७) पर्याप्त नामकर्म (८) पञ्चेन्द्रिय नामकर्म (8) मनुष्यायु (१०) मनुष्यगति (११) तीर्थङ्कर नामकर्म और (१२) उच्चगोत्र। इनका उदय चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक रहता है । इन प्रकृतियों से मुक्त होते ही जीव शुद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है।
उदीरणाधिकार विपाक का समय प्राप्त होने से पहले ही कर्मदलिकों को भोगना उदीरणा है अर्थात् कर्मदलिकों को प्रयत्नविशेप से खींच कर नियत समय से पहले ही उनके शुभाशुभ फलों को भोगना उदीरणा है। कर्मों के शुभाशुभ फलों को भोगना ही उदय तथा उदीरणा है, किन्तु दोनों में इतना भेद है कि उदय में किसी भी प्रकार के प्रयत्न के बिना स्वाभाविक क्रम से कर्मों के फल का भोग होता है और उदीरणा में प्रयन करने पर ही कर्मफल का भोग होता है।
पहले से लेकर छठे गुणस्थान तक उदय और उदीरणा एक समान हैं। सातवें से लेकर तेरहवें तक प्रत्येक गुणस्थान में उदय की अपेक्षा उदीरणा में नीचे लिखी तीन प्रकृतियाँ कम हैं- (१) सातावेदनीय (२) असातावेदनीय और (३)मनुष्य आयु। उदयाधिकार में बताया जा चुका है कि छठे गुणस्थान में८१ प्रकृतियों का उदय होता है। उनमें से (१) निद्रानिद्रा (२) प्रचलापचला (३) स्त्यानगृद्धि (४)आहारक शरीर (५)आहारक अड्रोपाङ्ग नामकर्म। इन पाँच प्रकृतियों का उदयविच्छेद छठे गुणस्थान के अन्त में