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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
तरह का संकेत कर लेना चाहिए। उसके लिए शास्त्र में आठ तरह के संकेत बताए गए हैं। पोरिसी यादि के बाद उनमें से किसी संकेत को मान कर पञ्चक्रवाण किया जा सकता है। वे ये हैं( १ ) अंगुष्ठ-ज - जब तक मैं अंगूठे को यहाँ से नहीं हटाऊँगा तब तक अनादि नहीं करूँगा । इस प्रकार संकेत करना अंगुष्ठसंकेत पच्चक्खाण है । आज कल इस प्रकार का संकेत अंगूठी से भी किया जाता है अर्थात् यह निश्चय कर लिया जाता है कि अमुक हाथ की अमुक अङ्गुली में जब तक अंगूठी पहिने रहूँगा तब तक मेरे पच्चक्खाण है । यह पञ्चक्खाण कर लेने पर जब तक अली में रहती है तब तक पञ्चक्खाण गिना जाता है। (२) मुष्टि- मुठ्ठी बन्द करके यह निश्चय करे कि जब तक मुठ्ठी नहीं खोलूँगा तब तक पच्चक्खाण है
(३) ग्रन्थि - कपड़े वगैरह में गांठ लगा कर यह निश्चय करे कि जब तक गांठ नहीं खोलूँ तब तक पच्चक्रवाण है 1 (४) गृह - जब तक घर में प्रवेश नहीं करूँगा तब तक त्याग है। (५) स्वेद -- जब तक पसीना नहीं सूखेगा तब तक पञ्चक्खाण है। ( ६ ) उच्छ्क्कास -- जब तक इतने साँस नहीं आएंगे तब तक त्याग है। (७) स्तिबुक -- पानी रखने के स्थान पर पड़ी हुई बूंदें जब तक सूख न जाएंगी, अथवा जब तक श्रोस की बूंदें नहीं सूखेंगी तब तक पच्चक्खाण है ।
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(८) दीपक - जब तक दीपक जलता रहेगा तब तक त्याग है। यद्यपि इस तरह के संकेत अनेक हो सकते हैं। फिर भी रास्ता बताने के लिए मुख्य आठ बताए गए हैं।
( हरिभद्रीयावश्यक प्रत्याख्यानाध्ययन )
५६० - कर्म आठ
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के निमित्त