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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
आहारों का त्याग किया जाता है। इसके बाद आयम्बिल करने का पञ्चक्रवाण आठ आगार सहित किया जाता है। प्रायम्बिल में एक वक्त नीरस आहार करने के बाद पानी के सिवाय तीनों
आहारों का त्याग किया जाता है। इसलिए इस में तिविहार एकासना के आगार भी रहते हैं।
आयम्बिल के आठ आगार निम्नलिखित हैं(१)अणाभोगेणं (२) सहसागारेणं (३) लेवालेवेणं (४)गिहत्यसंसटेणं (५) उक्वित्तविवेगेणं (६) परिहावणियागारेणं (७) महत्तरागारेणं (८) सव्वसमाहिवत्तियागारेणं। . (३) लेवालेवेणं-- लेप आदि लगे हुए बर्तन आदि से दिया हुआ आहार ग्रहण कर सकता है। (४)गिहत्यसंसडेणं-घी, तेल आदि से चिकने हाथों से गृहस्थ द्वारा दिया हुआ आहार पानी तथा दूसरे चिकने आहार का जिस में लेप लग गया हो ऐसा आहार पानी ले सकता है । (५) उक्खित्तविवेगेणं- ऊपर रक्खे हुए गुड़ शक्कर आदि को उठा लेने पर उनका कुछ अंश जिस में लगा रह गया हो ऐसी रोटी आदि को ले सकता है। ... बाकी आगारों का स्वरूप पहले दिया जा चुका है।
प्रायम्बिल और एकासना के सभी आगार मुख्यरूप से साधु के लिए बताए गए हैं । श्रावक को अपने लिए स्वयं देख लेने चाहिए। जैसे- परिहावणियागार श्रावक के लिए नहीं है।
.. (हरिभद्रीयावश्यक प्रत्याख्यानाध्ययन ) ५८६-पच्चक्खाण में आठ तरह का संकेत ।
पोरिसी आदि पञ्चक्वाण नियत समय हो जाने के बाद पूरे हो जाते हैं। उसके बाद श्रावक या साधु जब तक अशनादि का सेवन न करे तब तक पञ्चक्रवाण में रहने के लिए उसे किसी