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भी जैन सिद्धान्त घोल संग्रह
चित्र बनाने के लिए चित्रकारों को लगा दिया। वे सभी वहाँ आकर चित्र बनाने लगे। एक चित्रकार की बेटी अपने पिता को भोजन देने के लिए आया करती थी । एक दिन जब वह भोजन लेकर जा रही थी, नगर का राजा घोडे को दौड़ाते हुए राजमार्ग से निकला। लड़की डरकर भागी और किसी तरह नीचे आने से बची । वह भोजन लेकर पहुँची तो उसका पिता शारीरिक बाधा से निवृत्त होने के लिए चला गया। उसी समय लड़की ने पास पड़े हुए रंगों से फर्श पर मोर का पिच्छ (पंख) चित्रित कर दिया। राजाभी अकेला वहीं पर इधर उधर घूम रहाथा। चित्र पूरा होने पर लड़की दूसरी बात सोचने लगी। राजा ने पंख उठाने के लिए हाथ फैलाया। उसके नख भूमि से टकराए।
लड़की हँसने लगी और बोली- सन्दुक तीन पैरों पर नहीं टिकता । मैं चौथा पैर ढूँढ रही थी, इतने में तुम मिल गए। राजा ने पूछा- कैसे ? ___ लड़की बोली- मैं अपने पिता के लिए भोजन लारही थी। उसी समय एक पुरुष राजमार्ग से घोड़े को दौड़ाते ले जा रहा था। उसको इतना भी ध्यान नहीं था कि कोई नीचे माकर मर जायगा। भाग्य से मैं तो किसी तरह बच गई।वह पुरुष एक पैर है। दूसरा पैर राजा है। उसने चित्रसभा चित्रकारों में बांट रक्खी है। प्रत्येक कुटुम्ब में बहुत से चित्रकार हैं, लेकिन मेरा पिता अकेला है। उसे भी राजा ने उतना ही हिस्सा सौंप रक्स्या है। तीसरा पैर मेरे पिता हैं। राजकुल में चित्रसभा को चित्रित करते हुए उन्होंने पहिले जो कुछ कमाया था वह तो पूरा होगया। अब जो कुछ आहार मैं लाई हूँ। भोजन के समय वे शरीरचिन्ता के लिए चले गए। अब यह भी ठण्डा हो जायगा। "