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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
सेठ ने आकर मकान की हालत देखी तो उस स्त्री को निकाल दिया। दूसरा महल बनवाया और शादी भी दूसरी की। दूसरी स्त्री से कह दिया- अगर यह मकान टूट गया तो मैं । तुम्हारा नहीं रहूँगा। यह कह कर वह फिर परदेश चला गया।
वह स्त्री रोज तीन दफे मकान को अच्छी तरह देखती । लकड़ी, प्लास्टर, चित्रकारी या महल में कहीं भी थोड़ी सी तरेड़ या लकीर वगैरह देखती तो उसी समय मरम्मत करवा देती। सेठ ने आकर देखा तो महल को वैसा ही पाया जैसा वह छोड़ कर गया था। सन्तुष्ट होकर उसने उस स्त्री को घर की मालकिन बना दिया। वह सब तरह के भोग ऐश्वर्य की अधिकारिणी होगई। पहिली स्त्री कपड़े और भोजन के बिना बहुत दुःखी हो गई। ___प्राचार्य रूपी सेठ ने संयम रूपी महल की साल सम्हाल करने की आज्ञा दी । एक साधु ने प्रमाद और शरीर के सुख में पड़कर परवाह न की । वह पहली स्त्री की सरह संसार में दुःश्व पाने लगा । दूसरे ने संयम रूपी महल की अच्छी तरह साल सम्हाल की, वह निर्वाण रूपी सुख का भागी होगया। (३) परिहरणा- अर्थात् सब प्रकार से छोड़ना।
किसी गांव में एक कुलपुत्र रहता था। उसकी दो बहनें दूसरे गांवों में रहती थीं। कुछ दिनों बाद उसके एक लड़की पैदा हुई और दोनों बहनों के लड़के। योग्य उमर होने पर दोनों बहनें अपने अपने पुत्र के लिए उस लड़की को वरने
आई । कुलपुत्र सोचने लगा, किसकी बात माननी चाहिए ? उसने कहा तुम दोनों जाओ। अपने अपने लड़कों को भेज दो। जो परिश्रमी होगा उसे ही लड़की ब्याह दूँगा। उन्होंने घर जोकर पुत्रों को भेज दिया। कुलपुत्र ने दोनों कोदो घड़े दिये और कहा- जागो गोकुल से दूध ले आओ। वे दोनों घड़े