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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
भरकर वापिस लौटे । वापिस आते समय दो रास्ते मिले, एक घूमकर आता था लेकिन समतल था। दूसरा रास्ता सीधा था किन्तु ऊँची नीची जगह, झाड़ी तथा काँटों वाला था। एक लड़का इसी मार्ग से चला। रास्ते में वह गिर पडा और दूध का घड़ा फूट गया । अपने मामा के पास खाली हाथ पहुंचा। दूसरा लड़का लम्बे होने पर भी निष्कण्टक रास्ते (राजमार्ग) से धीरे धीरे दूध का घड़ा लेकर सुरक्षित पहुँच गया। इससे सन्तुष्ट होकर कुलपुत्र ने उसे लड़की ब्याह दी । दूसरे से कहा- मैंने जल्दी पाने के लिए तो नहीं कहा था। मैंने दूध लाने के लिए भेजा था, तुम नहीं लाए। इसलिए कन्या तुम्हें नहीं मिल सकती। ___ तीर्थङ्कर रूपी कुलपुत्र मनुष्य भव रूपी गोकुल से निर्दोष चारित्र रूपी ध को लाने की आज्ञा देते हैं। उसके दो मार्ग हैं-- जिन कल्प और स्थविर कल्प । जिन कल्प का मार्ग सीधा तो है लेकिन बहुत कठिन है । उत्तम संहनन वाले महापुरुष ही उस पर चल सकते हैं। स्थविर कल्प का मार्ग उपसर्ग, अपवाद वगैरह से युक्त होने के कारण लम्बा है। जो व्यक्ति जिनकल्प की सामर्थ्य वाला न होने पर भी उस पर चलता है वह संयम रूपी दूध के घड़े को रास्ते में ही फोड़ देता है अर्थात् चारित्र से गिर जाता है। इसीलिए मुक्तिरूपी कन्या को प्राप्त नहीं कर सकता। जोसमझदार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव जानकर अपनी शक्ति के अनुसार धीरे धीरे संयम की रक्षा करते हुए चलता है वह अन्त में सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। (४) वारणा- इसका अर्थ है निषेध ।
दृष्टान्त- एक राजा ने दूसरे पराक्रमी शत्रु राजा की सेना को समीप आया जान कर आस पास के कुए, बावड़ी, तालाब वगैरह निर्मल पानी के स्थानों में विष डाल दिया। दूध, दही,