________________ श्री जैन सिवान्स कोन समह (१)यमुना (२)सरयू (3) आची (४)कोसी (5) मही (6) सिन्धु(७)विवत्सा (E) विभासा (E) इरावती (10) चन्द्रभागा। ___(ठापांग, सत्र 717) 756- महानदियाँ दस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से उत्तर में दस महानदियाँ हैं। उनके नाम(१) कृष्णा (2) महाकृष्णा (3) नीला (4) महानीला (5) सीरा (6) महातीरा (7) इन्द्रा (E) इन्द्रसेना (8) वारिसेना (10) महामोगा। (ठाणांग, स्त्र 717) ७६०-कर्म और उनके कारण दस जिनके अधीन होकर जीव संसार में भ्रमण करता है उन्हें कर्म कहते हैं। यहाँ कर्म शब्द से कर्म पुद्गल, कार्य, क्रिया, करणी, व्यापार आदि सभी लिए जाते हैं। इन के दस भेद हैं(१) नाम कर्म- गुणन होने पर भी किसी सजीव या निर्जीव वस्तु का नाम कर्म रख देना नामकर्म है। जैसे किसी बालक का नाम कर्मचन्द रख दिया जाता है। उसमें कर्म के लक्षण और गुण कुछ भी नहीं पाये जाते, फिर भी उसको कर्मचन्द कहते हैं। (2) स्थापना कर्म-कर्म के गुण तथा लक्षण से शून्य पदार्थ में कर्म की कल्पना करना स्थापना कर्म है। जैसे पत्र या पुस्तक वगैरह में कर्म की स्थापना करना स्थापना कर्म है अथवा अपने पक्ष में आए हुए दूषण को दूर करने के लिए जहाँ अन्य अर्थ की स्थापना कर दी जाती हो उसे भी स्थापना कर्म कहते हैं। (3) द्रव्य कर्म- इसके दो भेद हैं(क) द्रव्य कर्म-कर्म वर्गणा के वे पुद्गल जो बन्ध योग्य हैं, बध्यमान अर्थात् बँध रहे हैं और बद्ध अर्थात् पहले बँधे हुए होने पर भी उदय और उदीरणा में नहीं आए हैं वे द्रव्य कर्म कहलाते हैं। (ख) नोद्रव्य कर्म-किसान आदि का कर्म नोद्रव्य कर्म कहलाता