________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला.. इनमें से प्रथम पाँच पर्वत सीता महानदी के दक्षिण तट पर हैं और शेष पाँच पर्वत उत्तर तट पर हैं। (ठाणांग, सूत्र 768) ७५७-दस प्रकार के कल्पक्ष ___ अकर्म भूमि में होने वाले युगलियों के लिए जो उपभोग रूप हो अर्थात् उनकी आवश्यकताओं को पूरी करने वाले वृक्ष कल्पवृक्ष कहलाते हैं / उनके दस भेद हैं(१) मतङ्गा-शरीर के लिए पौष्टिक रस देने वाले। (2) भृताङ्गा- पात्र आदि देने वाले / (3) त्रुटिताना-बाजे (वादित्र) देने वाले। (4) दीपाङ्गा- दीपक का काम देने वाले। (5) ज्योतिरङ्गा-प्रकाश को ज्योति कहते हैं / सूर्य के समान प्रकाश देने वाले / अग्नि को भी ज्योति कहते हैं। अग्नि का काम देने वाले भी ज्योतिरगा कल्पवृक्ष कहलाते हैं। (6) चित्राङ्गा- विविध प्रकार के फूल देने वाले। (7) चित्ररस-- विविध प्रकार के भोजन देने वाले / (8) मण्यङ्गा- आभूषण देने वाले। (8) गेहाकारा- मकान के आकार परिणित हो जाने वाले अर्थात् मकान की तरह आश्रय देने वाले। (10) अणियणा (अनग्रा)- वस्त्र आदि देने वाले। इन दस प्रकार के कल्पवृक्षों से युगलियों की आवश्यकताएं पूरी होती रहती हैं / अतः ये कल्पवृक्ष कहलाते हैं। (समवायांग 10) ( ठाणांग, सत्र 766) (प्रवचनसारोद्धार द्वार 171) 758- महा नदियाँ दस जम्बू द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में दस महा नदियाँ हैं। उन से पाँच नदियाँ तो गङ्गा नदी के अन्दर जाकर मिलती हैं और पाँच नदियाँ सिन्धु नदी में जाकर मिलती हैं। उनके नाम