________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 439 दक्षिण दिशा के अन्दर देवकुरु है और उत्तर दिशा में उत्तरकुरु है / देवकुरु पाँच हैं और उत्तरकुरु भी पाँच हैं। गजदन्ताकार (हाथी दाँत के सदृश आकार वाले) विद्युत्पभ और सौमनस नामक दो वर्षधर पर्वतों से देवकुरु परिवेष्टित हैं। इसी तरह उत्तरकुरु गन्धमादन और माल्यवान् नामक वर्षधर पर्वतों से घिरे हुए हैं। ये दोनों देवकुरु उत्तरकुरु अद्धे चन्द्राकार हैं और उत्तरदक्षिण में फैले हुए हैं। उनका प्रमाण यह है-ग्यारह हजार आठ सौ बयालीस योजन और दो कला (11842 2 / 16) का विस्तार है और 53000 योजन प्रमाण इन दोनों क्षेत्रों की जीवा(धनुष की डोरी) है। ___(ठाणांग, सूत्र 764 ) 755- वक्खार पर्वत दस जम्बू द्वीप के अन्दर मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महा नदी के दोनों तटों पर दस वक्वार पर्वत हैं। उनके नाम___ (1) मालवंत (2) चित्रकूट(६) पद्मकूट (4) नलिनकूट (5) एक शैल (6) त्रिकूट (7) वैश्रमण कूट (८)अञ्जन (8) मातञ्जन (10) सौमनस / ___ इन में से मालवन्त, चित्रकूट, पत्रकूट, नलिनकूट और एकशैल ये पाँच पर्वत सीता महानदी के उत्तर तट पर हैं और शेष पाँच पर्वत दक्षिण तट पर हैं। __(ठाणांग, सूत्र 768) 756- वक्खार पर्वत दस जम्बू द्वीप के अन्दर मेरु पर्वत के पश्चिम दिशा में सीता महा नदी के दोनों तटों पर दस वक्खार पर्वत हैं। उनके नाम (1) विद्युत् प्रभ(२)अंकावती(३)पद्मावती (4) आशीविष (5) सुखावह (6) चन्द्र पर्वत (7) सूर्य पर्वत (e) नाग पर्वत (E) देव पर्वत (10) गन्ध मादन पर्वत /