________________ . 432 भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला इन सूत्रों का यह निष्कर्ष है कि- (1) जघन्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का जघन्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों के साथ सदृश और विसदृश किसी भी प्रकारका बन्ध नहीं होता है / (2) जघन्य गुण वाले पुद्गलों का एकाधिक गुण वाले पुद्गलों के साथ सजातीय (सदृश) बन्ध नहीं होता है किन्तु विजातीय (विसदृश) बन्ध होता है और जघन्य गुण वाले पुद्गलों का द्विगुणाधिक पुगलों के साथ सदृश और विसदृश दोनों प्रकार का बन्ध होता है / जघन्य गुण वाले पुद्गलों को छोड़ कर शेष पुद्गलों के साथ उन्हीं के समान गुण वाले पुद्गलों का सदृश बन्ध नहीं होता है। किन्तु विसदृश बन्ध होता है। जघन्य गुण वाले पुद्गलों को छोड़ कर शेष पुद्गलों के साथ अपने से एकाधिक जघन्येतर गुण वाले पुद्गलों का सदृश बन्ध नहीं होता किन्तु विसदृश बन्ध होता है। जघन्येतर यानि जघन्य गुण वाले पुद्गलों के सिवाय अन्य पुद्गलों का द्विगुणाधिकादि जघन्येतर पुद्गलों के साथ सजातीय (सदृश) और विजातीय (विसदृश) दोनों प्रकार का बन्ध होता है। (2) गति परिणाम-अजीव पुदलों की गति होना गतिपरिणाम कहलाता है / यह दो प्रकार का है। स्पृशद्रति परिणाम और अस्पृशद्गति परिणाम / प्रयत्न विशेष से फैंका हुआ पत्थर आदि यदि पदार्थों को स्पर्श करता हुआ गति करे तो वह स्पृशद्गति परिणाम कहलाता है। जैसे पानी के ऊपर तिरछी फैकी हुई ठीकरी बीच में रहे हुए पानी का स्पर्श करती हुई बहुत दूर तक चली जाती है। यह स्पृशद्गति परिणाम है। ___ बीच में रहे हुए पदार्थों को बिना स्पर्श करते हुए गति करना अस्पृशद्गति परिणाम कहलाता है। जैसे बहुत ऊँचे मकान पर से फैंका हुआ पत्थर बीच में अन्य पदार्थ का स्पर्श