________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह. 433 न करते हुए एक दम नीचे पहुँच जाता है। ये दो प्रकार के गतिपरिणाम होते हैं / अथवा गतिपरिणाम के दूसरी तरह से दो भेद होते हैं / दीर्घगति परिणाम और हस्खगति परिणाम / दूर क्षेत्र में जाना दीर्घगति परिणाम कहलाता है और समीप के क्षेत्र में जाना हस्वगति परिणाम कहलाता है। (3) संस्थान परिणाम-आकार विशेष को संस्थान कहते हैं। पुद्गलों का संस्थान के रूप में परिणत होना संस्थान परिणाम है। छः संस्थान दूसरे भाग के बोल नं. 466 बताए गए हैं। (4) भेद परिणाम- पदार्थ में भेद का होना भेद परिणाम कहलाता है। इसके पाँच भेद हैं / यथा(क) खण्ड भेद-जैसे घड़े को फैंकने पर उसके खण्ड खण्ड (टुकड़े टुकड़े) हो जाते हैं / यह पदार्थ का खण्ड भेद कहलाता है। (ख) प्रतर भेद- एक तह के ऊपर दूसरी तह का होना प्रतर भेद कहलाता है / जैसे आकाश में बादलों के अन्दर प्रतर भेद पाया जाता है। (ग) अनुतट भेद-एक हिस्से (पोर) से दूसरे हिस्से तक भेद होना अनुतट भेद कहलाता है। जैसे बांस के अन्दर एक पोर से दूसरे पोर तक का हिस्सा अनुतट है। (घ) चूर्ण भेद- किसी वस्तु में पिस जाने पर भेद होना चूर्ण भेद कहलाता है / जैसे आटा। (ङ) उत्करिका भेद- छीले जाते हुए प्रस्थक (पायली) के जो छिलके उतरते हैं उनका भेद उत्करिका भेद कहलाता है। (5) वर्ण परिणाम-वर्ण परिणाम कृष्ण (काला), नीला, रक्त (लाल),पीत (पीला), श्वेत (सफेद) के भेद से पाँच प्रकार का है। (6) गन्ध परिणाम- सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध के रूप में पुद्गलों का परिणत होना गन्ध परिणाम है।