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________________ ... श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह 431 riparwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww स्निग्ध और जघन्य गुण वाले (एक गुण वाले) रूक्ष पुदलों का सजातीय और विजातीय बन्ध नहीं होता है। इसका तात्पर्य यह है कि जघन्य गुण वाले स्निग्ध पुगलों का जघन्य गुणवाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों के साथ और जघन्य गुण वाले रूक्ष पुद्गलों का जघन्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता है क्योंकि स्नेह गुण जघन्य होने के कारण उसमें पुद्गलों को परिणमाने की शक्ति नहीं है किन्तु मध्यम गुण वाले अथवा उत्कृष्ट गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का सजातीय और विजातीय बन्ध होता है, परन्तु इसमें इतनी विशेषता है कि 'गुण साम्ये सदृशानाम्' अर्थात् गुणों की समानता होने पर सदृश बन्ध नहीं होता है। संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त गुण वाले स्निग्ध पुद्गलों का संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त गुण वाले स्निग्ध पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता है। इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त गुण वाले रूक्ष पुद्गलों का इतने ही (संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त) गुण वाले रूक्ष पुद्गलों के साथ बन्ध नहीं होता है। इस सूत्र का यह तात्पर्य है कि गुणों की विषमता हो तो सदृश पुद्गलों का बन्ध होता है और गुणों की समानता हो तो विसदृश पुगलों का बन्ध होता है। कितने गुणों की विषमता होने पर बन्ध होता है ? इसके लिए बतलायागया है कि 'यधिकादि गुणानां तु' अर्थात् दो तीन आदि गुण अधिक हों तो स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का सदृश बन्ध भी होता है। यथा- जघन्य गुण वाले (एक गुण वाले) स्निग्ध परमाणु का त्रिगुण स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध होता है। इसी प्रकार जघन्य गुण वाले (एक गुण पाल) रूप परमाणु का अपने से द्विगुणाधिक अर्थात् त्रिगुण रूक्ष परमाणु के साथ बन्ध होता है।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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