________________ -- - -- - - - भी सेठिया जैन प्रन्थमाला. उत्कृष्ट रूपसे होती हैं। इन वेदनाओं का विशेष विवरण सातवें बोल संग्रह के बोल नं. 560 में दिया गया है (ठाणांग, सूत्र 753) 746- जीव परिणाम दस __एक रूप को छोड़ कर दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाना परिणाम कहलाता है। अथवा विद्यमान पर्याय को छोड़ कर नवीन पर्याय को धारण कर लेना परिणाम कहलाता है / जीव / के दस परिणाम बतलाए गए हैं(१) गति परिणाम- नरकगति, तिर्यश्चगति, मनुष्यगति और देवगति में से जीव को किसी भी गति की प्राप्ति होना गतिपरिणाम है / गति नामकर्म के उदय से जीव जब जिस गति में होता है नब वह उसी नाम से कहा जाता है। जैसे नरकगति का जीव नारक, देवगति का जीव देव आदि। किसी भी गति में जाने पर जीव के इन्द्रियाँ अवश्य होती हैं। इम लिए गति परिणाम के आगे इन्द्रिय परिणाम दिया गया है। (2) इन्द्रिय परिणाम-- किसी भी गति को प्राप्त हुए जीव को श्रोत्रेन्द्रिय आदि पाँच इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय की प्राप्ति होना इन्द्रिय परिणाम कहलाता है। इन्द्रिय की प्राप्ति होने पर राग द्वेष रूप कषाय की परिणति होती है। अतः इन्द्रिय परिणाम के आगे कषाय परिणाम कहा है। (3) कषाय परिणाम- क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चार कषायों का होना कषाय परिणाम कहलाता है। कषाय परिणाम के होने पर लेश्या अवश्य होती है किन्तु लेश्या के होने पर कषाय अवश्यम्भावी नहीं है / क्षीण कषाय गुणस्थानवर्ती जीव (सयोगी केवली) के शुक्ल लेश्या नौ वर्ष कम करोड़ पूर्व तक रह सकती है। इसका यह तात्पर्य है कि कषाय के सद्भाव में लेश्या की नियमा है और लेश्या के समय में कषाय की