________________ की सिद्धान्त बोलसंग्रह पहले व्यवधान वाले पुद्गलों का आहार करते हैं या जो प्रथम समय में आहार ग्रहण नहीं करते हैं वे परम्पराहारक कहलाते हैं। उपरोक्त दोनों भेद द्रव्य की अपेक्षा से हैं। (7) अनन्तर पर्याप्तक- जिनके पर्याप्त होने में एक समय का भी अन्तर नहीं पड़ा है, वे अनन्तर पर्याप्तक या प्रथम समय पर्याप्तक कहलाते हैं। (8) परम्परा पयोतक-- अनन्तर पर्याप्तक से विपरीत लक्षण वाले अर्थात् उत्पत्ति काल से दो तीन समय पश्चात् पर्याप्तक होने वाले परम्परा पर्याप्तक कहलाते हैं। __ ये दोनों भेद भाव की अपेक्षा से हैं। (6) चरम- वर्तमान नारकी का भव समाप्त करने के पश्चात् जो जीव फिर नारकी का भव प्राप्त नहीं करेंगे वे चरम अर्थात् अन्तिम भव नारक कहलाते हैं। (10) अचरम-- वर्तमान नारकी के भव को समाप्त करके जो फिर भी नरक में उत्पन्न होवेंगे वे अचरम नारक कहलाते हैं। ___ ये दोनों भेद भी भाव की अपेक्षा से हैं क्योंकि चरम और अचरम ये दोनों पर्याय जीव के ही होते हैं। / जिस प्रकार नारकी जीवों के ये दस भेद बतलाए गए हैं वैसे ही दस दस भेद चौवीस ही दण्डकों के जीवों के होते हैं। (ठाणांग, सूत्र 750) 748- नारकी जीवों के वेदना दस (1) शीत- नरक में अत्यन्त शीत (ठण्ड) होती है। (2) उष्ण (गरमी) (3) क्षुधा (भूख) (4) पिपासा (प्यास) (५)कण्डू (खुजली)(६)परतन्त्रता (परवशता) (7) भय (डर) (8) शोक (दीनता) (8) जरा (बुढ़ापा) (10) व्याधि (रोग)। उपरोक्त दस वेदनाएं नरकों के अन्दर अत्यन्त अर्थात्