________________ मी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 12.. भजना है। आगे लेश्या परिणाम कहा जाता है। (4) लेश्या परिणाम- लेश्याएं छः हैं। कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, पब लेश्या, शुक्ल लेश्या। इन लेश्याओं में से किसी भी लेश्या की प्राप्ति होना लेश्यापरिणाम कहलाता है। योग के होने पर ही लेश्या होती है। अतः आगे योग परिणाम कहा जाता है। * (5) योग परिणाम- मन, वचन, काया रूप योगों की प्राप्ति होना योग परिणाम कहलाता है। संसारी प्राणियों के योग होने पर ही उपयोग होता है। अतः योग परिणाम के पश्चात् उपयोग परिणाम कहा गया है। (6) उपयोग परिणाम- साकार और अनाकार (निराकार) के भेद से उपयोग के दो भेद हैं। दर्शनोपयोग निराकार (निर्विकल्पक) कहलाता है और ज्ञानोपयोग साकार (सविकल्पक) होता है। इनके रूप में जीव की परिणति होना उपयोग परिणाम है। ___ उपयोग परिणाम के होने पर ज्ञान परिणाम होता है। अतः आगे ज्ञान परिणाम बतलाया जाता है। (7) ज्ञान परिणाम-- मति श्रुति आदि पाँच प्रकार के ज्ञान रूप में जीव की परिणति होना ज्ञान परिणाम कहलाता है। यही ज्ञान मिथ्यादृष्टि कोअज्ञान स्वरूप होता है। अतः मत्यज्ञान श्रुत्यज्ञान विभज्ञान का भी इसी परिणाम में ग्रहण हो जाता है। ___ मतिज्ञान आदि के होने पर सम्यक्त्व रूप दर्शन परिणाम होता है। अतः आगे दर्शन (सम्यक्त्व) परिणाम का कथन है। (८)दर्शन परिणाम-सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र (सम्यकमिथ्यात्व) के भेद से दर्शन के तीन भेद हैं। इन में से किसी एक में जीव की परिणति होना दर्शन परिणाम है। दर्शन के पश्चात् चारित्र होता है। अतः आगे चारित्र परि