________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 419 736- द्वीपकुमार देवों के दस अधिपति द्वीपकुमारों के दो इन्द्र हैं- (1) पूर्ण और (2) रूपप्रभ / इनके चार चार लोकपाल हैं / (1) पूर्व में विशिष्ट (2) दक्षिण में रूप (3) पश्चिम में रूपाश (4) उत्तर में रूपकान्त / (भगवती शतक 3 उद्देशा 8) - 737- उदधिकुमारों के दस अधिपति . उदधिकुमारों के दो इन्द्र हैं- (1) जलकान्त (2) जलप्रभ / इन दोनों इन्द्रों के चारों दिशाओं में चार चार लोकपाल होते हैं / (1) पूर्व दिशा में जलप्रभ (2) दक्षिण दिशा में जल (3) पश्चिम दिशा में जलरूप (4) उत्तर दिशा में जलकान्त / इस तरह उदधिकुमारों के कुल दस अधिपति हैं। (भगवती श० 3 उ०८) ७३८-दिककुमार देवों के दस अधिपति ___ अमितगति और सिंहविक्रमगति दिककुमार देवों के इन्द्र हैं। प्रत्येक इन्द्र के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में क्रमशः (1) अमितवाहन (2) तूर्यगति (3) क्षिप्रगति (1) सिंहगति नामक चार लोकपाल हैं। इस प्रकार दिककुमार देवों के दस अधिपति हैं। (भगवती शतक 3 उद्देशा 8) 736- वायुकुमारों के दस अधिपति वेलम्ब और रिष्ट ये दो इनके इन्द्र हैं। प्रत्येक इन्द्र के चारों दिशाओं में चार लोकपाल हैं। यथा- (1) पूर्व दिशा में प्रभञ्जन (2) दक्षिण दिशा में काल (3) पश्चिम दिशा में महाकाल (4) उत्तर दिशा में अञ्जन। . __ इस प्रकार दो इन्द्र और आठ लोकपाल ये दस वायुकुमारों के अधिपति हैं। (भगवती शतक 3 उद्दशा 8)