________________ 420 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ७४०-स्तनित कुमार देवों के दस अधिपति घोष और महानन्द्यावर्त ये दो स्तनितकुमार देवों के इन्द्र हैं। प्रत्येक इन्द्र के चारों दिशाओं में चार लोकपाल हैं। यथा(१) पूर्व दिशा में महाघोष (2) दक्षिण दिशा में आवर्त (3) पश्चिम दिशा में व्यावर्त (4) उत्तर दिशा में नन्यावर्त / ___ इस प्रकार दोइन्द्र और आठ लोकपाल ये दस स्तनितकुमार देवों के अधिपति हैं। (भगवती शतक 3 उला) 741- कल्पोपपन्न इन्द्र दस __ कल्पोपपन्न देवलोक बारह हैं। उनके दस इन्द्र ये हैं(१) सुधमे देवलोक का इन्द्र सौधर्मेन्द्र या शक्रेन्द्र कहलाता है। (2) ईशान देवलोक का इन्द्र ईशानेन्द्र कहलाता है / (3) सनत्कुमार (4) माहेन्द्र (5) ब्रह्मलोक (6) लान्तक (7) शुक्र (5) सहस्रार (8) आणत (10) प्राणत (11) आरण (12) अच्युत। इन देवलोकों के इन्द्रों के नाम अपने अपने देवलोक के समान ही हैं / नवें और दसवें देवलोक का प्राणत नामक एक ही इन्द्र होता है / ग्यारहवें और बारहवें देवलोक का भी अच्युत नामक एक ही इन्द्र होता है। इस प्रकार बारह देवलोकों के दस इन्द्र होते हैं। इन देवलोकों में छोटे बड़े का कल्प (व्यवहार) होता है और इनके इन्द्र भी होते हैं / इसलिए ये देवलोक कल्पोपपन्न कहलाते हैं। - (ठाणांग, सूत्र 766) 742- जम्भक देवों के दस भेद अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र प्रवृत्ति करने वाले अर्थात् निरन्तर क्रीड़ा में रत रहने वाले देव जम्भक कहलाते हैं / ये अति प्रसन्न चित्त रहते हैं और मैथुन सेवन की प्रवृत्ति में आसक्त बने रहते हैं। ये तिर्खे लोक में रहते हैं। जिन मनुष्यों पर ये प्रसन्न हो