________________ श्री जैन सिद्धान्त बोन संग्रह दोष है। जैसे मनुष्य का लक्षण सींग / नोट- ठाणांग सूत्र की टीका में लक्षण के दो ही दोष बताए हैं, अव्याप्ति और अतिव्याप्ति / किन्तु न्याय शास्त्र के ग्रन्थों में तीनों लक्षण प्रचलित हैं। - अथवा दृष्टान्त को लक्षण कहते हैं और दृष्टान्त के दोष को लक्षण दोष / साध्यविकल, साधनविकल, उभयविकल आदि दृष्टान्तदोष के कई भेद हैं। जिस दृष्टान्त में साध्य न हो उसे साध्यविकल कहते हैं। जैसे शब्द नित्य है, क्योंकि मूर्त है। जैसे घड़ा / यहाँ घड़े में नित्यत्व रूप साध्य नहीं है। (6) कारणदोष-जिस हेतु के लिए कोई दृष्टान्त न हो / परोक्ष अर्थ का निर्णय करने के लिए सिर्फ उपपत्ति अर्थात् युक्ति को कारण कहते हैं। जैसे सिद्ध निरुपम सुख वाले होते है क्योंकि उनकी ज्ञान दर्शन आदि सभी बातें अव्याबाघ और अनन्त हैं। यहाँ पर साध्य और साधन दोनों से युक्त कोई दृष्टान्त लोक प्रसिद्ध नहीं है। इस लिए इसे उपपत्ति कहते हैं। दृष्टान्त होने पर यही हेतु हो जाता। ___साध्य के बिना भी कारण का रह जाना कारण दोष है। जैसे-वेद अपौरुषेय है, क्योंकि वेद का कोई कारण नहीं सुना जाता। कारणका न सुनाई देना अपौरुषेयत्व को छोड़ कर दूसरे कारणों से भी हो सकता है। (7) हेतुदोष--जो साध्य के होने पर हो और उसके विनान हो तथा अपने अस्तित्व से साध्य का ज्ञान फरावे उसे हेतुकहते हैं। हेतु के तीन दोष हैं-(क) प्रसिद्ध (ख)विरुद्ध (ग) अनेकान्तिक। __ (क) प्रसिद्ध- यदि पक्ष में हेतु का रहना वादी, प्रतिवादी यादोनों को प्रसिद्ध हो तो असिद्ध दोष है। जैसे-शब्द अनित्य है, क्योंकि आँखों से जाना जाता है। घड़े की तरह। यहाँशब्द