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________________ 408 है, इस लिए हेतु असाधारणानकान्तिक हो जायगा। यदिरसोई घर वाला, तो प्रसिद्ध है क्योंकि वह धूआँ पर्वत में नहीं है। हेतु में इस प्रकार के दोष देना परिहरण दोष है। (5) लक्षण दोष- बहुत से पदार्थों में किसी एक पदार्थ को अलग करने वाला धर्म लक्षण कहलाता है। जैसे जीव का लक्षण उपयोग। जीव में उपयोग ऐसी विशेषता है जो इसे सब अजीवों ज्ञान हो उसे प्रमाण कहते हैं। यहाँ अपना और पराया सच्चा ज्ञान रूप लक्षण प्रमाण को दूसरे सब पदार्थों से अलग करता है। ___ लक्षण के तीन दोष हैं- (क) अव्याप्ति (ख) अति व्याप्ति और (ग) असम्भव / __ (क) अव्याप्ति-जिस पदार्थ के सानिधान और असनिधान से ज्ञान के प्रतिभास में फरक हो जाता है, उसे स्खलक्षण अर्थात् विशेष पदार्थ कहते हैं / यह स्खलक्षण का लक्षण है किन्तु यह इन्द्रिय प्रत्यक्ष को लेकर ही कहा जा सकता है योगिप्रत्यक्ष को लेकर नहीं, क्योंकि योगिपत्यक्ष के लिए पदार्थ के पास होने की आवश्यकता नहीं है। इस लिए स्खलक्षण का यह लक्षण सभी स्खलक्षणों को व्याप्त नहीं करता। इसी को अव्याप्ति दोष कहते हैं अर्थात् लक्षण यदि लक्ष्य (जिसका लक्षण किया जाय)के एक देश में रहे और एक देश में नहीं तो उसे अव्याप्ति दोष कहते हैं। (ख)अतिव्याप्ति-लक्षण का लक्ष्य और अलक्ष्य (लक्ष्य के सिवाय दुसरे पदार्थ)दोनों में रहना अतिव्याप्ति दोष है। जैसे'पदार्थों की उपलब्धि के हेतु कोप्रमाण कहते हैं।' पदार्थों की उपलब्धि के आँख, दही चावल खानाआदिबहुत से हेतु हैं। वे सभी प्रमाण हो जाएंगे / इस लिए यहाँ अतिव्याप्ति दोष है। (ग) असम्भव-लक्षण का लक्ष्य में बिल्कुल न रहना असम्भव
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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