________________ श्री सेठिया जैन अन्धमाला . . ': (पक्ष) में आँखों के ज्ञान का विषय होना (हेतु) असिद्ध है। ... (ख) विरुद्ध- जो हेतु साध्य से उल्टा सिद्ध करे / जैसे'शब्द नित्य है, क्योंकि कृतक है। घड़े की तरह।' यहाँ कृतकत्व (हेतु) नित्यत्व (साध्य) से उल्टे अनित्यत्व को सिद्ध करता है। क्योंकि जो वस्तु की जाती है वह नित्य नहीं होती। (ग) अनैकान्तिक-जो हेतु साध्य के साथ तथा उसके बिना भी रहे उसे अनैकान्तिक कहते हैं। जैसे शब्द नित्य है, क्योंकि प्रमेय है, आकाश की तरह / यहाँ प्रमेयत्व हेतु नित्य तथा अनित्य सभी पदार्थों में रहता है इस लिए वह नित्यत्व को सिद्ध नहीं कर सकता। (8) संक्रामण- प्रस्तुत विषय को छोड़ कर अप्रस्तुत विषय में चले जाना अथवा अपना मत कहते कहते उसे छोड़ कर प्रतिवादी के मत को स्वीकार कर लेना तथा उसका प्रतिपादन करने लंगना संक्रामण दोष है। (8)निग्रह-छल आदि से दूसरे को पराजित करना निग्रह दोष है। (10) वस्तुदोष-'जहाँ साधन और साध्य रहें ऐसे पक्ष को वस्तु कहते हैं / पक्ष के दोषों को वस्तुदोष कहते हैं। प्रत्यक्षनिराकृत, आगमनिराकृत,लोकनिराकृत आदि इसके कई भेद हैं। जो पक्ष प्रत्यक्ष से बाधित हो उसे प्रत्यक्षनिराकृत कहते हैं। जैसे-- शब्द श्रवणेन्द्रिय का विषय नहीं है। यह कहना प्रत्यक्ष बाधित है, क्योंकि शब्द का कान से सुना जाना प्रत्यक्ष है। इसी प्रकार दूसरे दोष भी समझ लेने चाहिएं। (ठाणांग, सूत्र 743 टीका) 723- विशेष दोष दस . जिसके कारण वस्तुओं में भेद हो अर्थात् सामान्य रूप से ग्रहण की हुई बहुत सी वस्तुओं में से किसी व्यक्ति विशेष को पहिचाना जाय, उसे विशेष कहते हैं / विशेष का अर्थ है व्यक्ति या भेद / पहले सामान्य रूप से वाद के दस दोष बताए गए हैं।