________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 399 ये भी अवयव से दिए गए नाम हैं। गौण नाम किसी गुण के कारण सामान्य रूप से प्रवृत्त होता है और इसमें अवयव की प्रधानता है। (6) संयोग- किसी वस्तु के सम्बन्ध से जो नाम पड़ जाता है, उसे संयोग कहते हैं। इसके चार भेद हैं- द्रव्यसंयोग, क्षेत्र संयोग, काल संयोग और भाव संयोग। द्रव्य संयोग के तीन भेद हैं- सचित, अचित्त और मिश्र / सचित्त वस्तु के संयोग से नाम पड़ना सचित्तद्रव्यसंयोग है। जैसे-- गाय वाले को गोमान् भैंस वाले को महिषवान् इत्यादि कहा जाता है। ये नाम सचित्त गाय आदि पदार्थों के नाम से पड़े हैं। अचित्त वस्तु के संयोग से पड़ने वाला नाम अचित्तद्रव्यसंयोग है। जैसे-- छत्र वाले को छत्री, दण्ड वाले को दण्डी कहना। सचित्त और अचित्त दोनों के संयोग से पड़ने वाले नाम को मिश्रसंयोग कहते हैं। जैसे हल से हालिक / यहाँ अचित्त हल और सचित्त बैल दोनों से युक्त व्यक्ति को हालिक कहा जाता है। इसी तरह शकट अर्थात् गाड़ी वाला शाकटिक, रथवाला रथी कहलाता है। क्षेत्र संयोग-- भरतादि क्षेत्रों से पड़ने वाला नाम / जैसेभरत से भारत, मगध से मागध, महाराष्ट्र से मरहट्ठा इत्यादि। - काल संयोग-- काल विशेष में उत्पन्न होने से पड़ने वाला नाम। जैसे-- सुषमसुषमा में उत्पन्न व्यक्ति मुषममुषमक कहलाता है / अथवा पावस (वर्षा ऋतु) में उत्पन्न पावसक कहलाता है। भावसंयोग-- अच्छे या बुरे विचारों के संयोग से नाम पड़ जाना। इसके दो भेद हैं-प्रशस्तभावसंयोग और अप्रशस्तभावसंयोग / ज्ञान से ज्ञानी, दर्शन से दर्शनी आदि प्रशस्तभावसंयोग हैं। क्रोध से क्रोधी,मान से मानी आदि अप्रशस्त भावसंयोग हैं। (10) प्रमाण- जिस से वस्तु का सम्यग्ज्ञान हो उसे प्रमाण