________________ 390 श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला उस नाम वाले हर एक में पाया जाता है। प्रधान नाम अधिक संख्या के कारण पड़ता है, इस लिए वह असली अर्थ में अधिक संख्या में पाया जाता है, सब में नहीं। जैसे-तमा गुण क्षमण कहलाने वाले सब में होता है किन्तु थोड़े से आम के पेड़ होने पर भी अधिक अशोक होने के कारण किसी वन को अशोकवन कहा जाता है वहाँ अधिक की मुख्यता है। (6) अनादिसिद्धान्त- जहाँ शब्द और उसका वाच्य अनादि काल से सिद्ध हों, ऐसे नाम को अनादिसिद्धान्त कहते हैं। जैसेधर्मास्तिकाय आदि / (7) नाम से नाम- दादा, परदादा आदि किसी पूर्वज के नाम से पौत्र या प्रपौत्र आदि का रक्खा गया नाम / (0) अवयव से नाम-- शरीर के किसी अवयव से सारे अवयवी का नाम रख लेना। जैसे-सींग वाले को शृङ्गी, शिखा (चोटी) वाले को शिखी, विषाण (सींग) वाले को विषाणी, दाढा वाले को दाढी, पंख वाले को परखी, खुर वाले को खुरी, नख वाले को नखी, अच्छे केश वाले को सुकेशी, दो पैर वाले को द्विपद (मनुष्यादि),चार पैर वाले को चतुष्पद,बहुतपैर वाले को बहुपद, पूंछ वाले को लाली, केसर (कन्धे के बाल) वाले को केसरी, तथा ककुद् (बैल के कन्धे पर उठी हुई गाँठ) वाले को ककुमान् कहा जाता है / तलवार आदि बाँध कर सैनिक सरीखे कपड़े पहनने से किसी व्यक्तिको शूरवीर कह दिया जाता है। विशेष प्रकार के शृङ्गार और वेशभूषा से स्त्री जानी जाती है। एक चावल को देखकर बटलोई के सारे चावलों के पकने का ज्ञान किया जाता है / काव्य की एक गाथा से सारे काव्य के माधुर्य का पता लग जाता है। किसी एक बात को देखने से योद्धा, स्त्री, चावलों का पकना, काव्य की मधुरता आदि का ज्ञान होने से