________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह हैं तो मङ्गल के लिए अशिवा को भी शिवा कहते हैं / इन स्थानों को छोड़ कर बाकी जगह कोई नियम नहीं है अर्थात् भजना है। इसी प्रकार किसी कारण से कोई आग को ठण्डा तथा विष को मीठा कहने लगता है / कलाल के घर में अम्ल शब्द कहने पर शराब खराब होजाती है इस लिए वहाँ खट्टे को भी स्वादिष्ट कहा जाता है। ऊपर लिखे शब्द विशेष स्थानों पर विपरीत अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो सामान्य रूप से विपरीत अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। जैसे--लत्त (रक्त-लाल) होने पर भी अलत्तए (अलक्तक--स्त्रियाँ जिससे पैर रंगती हैं) कहा जाता है। लाबु (जलादि वस्तु को लाकर रखने वाली) तुम्बी भी अलाबु कही जाती है / सुम्भक (शुभ वर्ण वाला) होने पर भी कुसुम्भक कहा जाता है। बहुत अधिक लपन (बकवाद) न करने पर भी 'बालपन्' कहा जाता है। बहुत कुछ सारहीन अण्ड बण्ड बोलने पर भी वक्ता को कहा जाता है, इसने कुछ नहीं कहा / इत्यादि सभी नाम विपक्षपद हैं। अगौण में गुण रहित वस्तु का भी उस गुण से युक्त नाम रक्खा जाता है / विपक्ष पद में नाम बिल्कुल उल्टा होता है। (5) प्रधानतापद-- बहुत सी बातें होने पर भी किसी प्रधान को लेकर उस नाम से पुकारना। जैसे-किसी उद्यान में थोड़े से आम आदि के वृक्ष होने पर भी अशोक वृक्ष अधिक होने से वह अशोकवन कहलाता है। इसी प्रकार किसी वन में सप्तपर्ण अधिक होने से वह सप्तपर्णवन कहलाता है। गौण पद में क्षमा आदि गुण से युक्त होने के कारण नाम दिया जाता है। वह नाम पूरे अर्थ को व्याप्त करता है। प्रधानतापद सिर्फ प्रधान वस्तु को व्याप्त करता है। यह सम्पूर्ण वस्तु को व्याप्त नहीं करता। गौण नाम का व्यवहार जिस गुण के कारण किया जाता है वह गुण