________________ 400 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कहते हैं / प्रमाणयुक्त नाम को प्रमाण कहते हैं। इसके चार भेद हैं--नाम प्रमाण, स्थापना प्रमाण, द्रव्य प्रमाण और भाव प्रमाण। / नामप्रमाण--किसी जीव, अजीव या मिश्रवस्तु का नाम प्रमाण रख लेना नाम प्रमाण है। . स्थापना प्रमाण-- नक्षत्र, देवता, कुल, गण, मत आदि को लेकर किसी के नाम की स्थापना करना स्थापना प्रमाण है। इसके सात भेद हैं(क) नक्षत्रस्थापना प्रमाण- कृत्तिका आदि नक्षत्रों के नाम से किसी का नाम रखना नक्षत्रस्थापना प्रमाण है / जैसे-- कृत्तिका में पैदा होने वाले का नाम 'कार्तिक' रखना। इसी तरह कृत्तिकादत्त, कृत्तिकाधर्म, कृत्तिकाशर्म, कृत्तिकादेव, कृत्तिकादास, कृत्तिकासेन तथा कृत्तिकारक्षित आदि। इसी प्रकार दूसरे 27 नक्षत्रों के भी नाम जानने चाहिएं। (ख ) देवतास्थापना प्रमाण-कृत्तिका वगैरह नक्षत्रों के अठाईस ही देवता हैं। उनमें से किसी के नाम की स्थापना देवतास्थापना प्रमाण है / जैसे-- कृत्तिका नक्षत्र का अधिष्ठाता देव अग्नि है। इसलिए कृत्तिका नक्षत्र में पैदा हुए का नाम शामिक या अनिदत्त वगैरह रखना। (ग) कुलनाम स्थापना प्रमाण- जो जीव जिस उग्रादि कुल में उत्पन्न हुआ है, उसकुल से नाम की स्थापना करना कुलस्थापना है / जैसे कौरव, ज्ञातपुत्र वगैरह / (घ) पासंडनाम- किसी मत या सम्प्रदाय के नाम की स्थापना करना। जैसे-निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, गैरुक, आजीवक ये पाँच प्रकार के श्रमण तथा नैयायिकादि मतों के पाण्डुरंग वगैरह नामों की स्थापना। (ङ) गण स्थापना-- मल्ल नट वगैरह की टोली को गण कहते