________________ 392 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला more करने वाले अनुयोग को चरणकरणानुयोग कहते हैं। ... धर्मकथानुयोग-- तीर्थङ्कर, साधु, मुख्य श्रावक, चरम शरीरी मादि उत्तम पुरुषों का कथाविषयक अनयोग धर्मकथानुयोग है। गणितानुयोग-चन्द्र सूर्य आदि ग्रह और नक्षत्रों की गति तथा गणित के दूसरे विषयों को बताने वालागणितानुयोग कहलाता है। द्रव्यानुयोग- जीव आदि द्रव्यों का विचार जिसमें हो उसे द्रव्यानुयोग कहते हैं / इस के दस भेद हैं(१) द्रव्यानुयोग-जीवादि पदार्थों को द्रव्य क्यों कहा जाता है, इत्यादि विचार को द्रव्यानुयोग कहते हैं। जैसे-- जो उत्तरोत्तर पर्यायों को प्राप्त हो और गुणों का आधार हो उसे द्रव्य कहते हैं। जीव मनुष्यत्व देवत्व वगैरह भिन्न भिन्नपर्यायों को प्राप्त करता है। एक जन्म में भी बाल्य युवादि पर्याय प्रतिक्षण बदलते रहते हैं। काल के द्वारा होने वाली ये अवस्थाएं जीव में होती ही रहती हैं तथा जीव के ज्ञान वगैरह सहभावी गुण इमेशा रहते हैं, जीव उनके बिना कभी नहीं रहता। इसलिए गुण और पर्यायों वाला होने से जीव द्रव्य है। (2) मातृकानुयोग-- उत्पाद, ब्यय और धौव्य इन तीन पदों को मातृकापद कहते हैं / इन्हें जीवादि द्रव्यों में घटाना मातृकानुयोग है। जैसे-- जीव उत्पाद वाला है, क्योंकिवाल्यादि नवीन पर्याय प्रतिक्षण उत्पन्न होते रहते हैं। यदिपतिक्षण नवीन पर्याय उत्पन्न न हों तो वृद्ध वगैरा अवस्थाएं न आएं, क्योंकि रद्धावस्था कभी एक ही साथ नहीं पाती। प्रतिक्षणं परिवर्तन होता रहता है। जीवद्रव्य व्यय वाला भी है क्योंकि बाल्य वगैरह अवस्थाएं प्रतिक्षण नष्ट होती रहती हैं। यदि व्यय न हो तो जीव सदा बाल्य अवस्था में ही बनारहे / जीव द्रव्य रूप से ध्रुव भी है अर्थात् हमेशा बना रहता है। यदि ध्रौव्यगुण वाला न हो, हमेशा बिल्कुल नया