________________ जो जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (3) द्रव्यानुपूर्वी- जो वस्तु पहले कभी आनुपूर्वी के रूप में परिणत हो चुकी हो या भविष्य में होने वाली हो उसे द्रव्यानुपूर्वी कहते हैं। (4) क्षेत्रानुपूर्वी क्षेत्र विषयक पूर्वापरीभाव को क्षेत्रानुपूर्वी कहते हैं। जैसे इस गाँव के बाद वह गाँव है और उसके बाद वह इत्यादि। (5) कालानुपूर्वी- काल विषयक पौर्वापर्य को कालानुपूर्वी कहते हैं / जैसे अमुक व्यक्ति उससे बड़ा है या छोटा है इत्यादि / (6) उत्कीर्तनानुपूर्वी-किसी क्रम को लेकर कई पुरुष या वस्तुओं का उत्कीर्तन अर्थात् नाम लेना उत्कीर्तनानुपूर्वी है। (7) गणनानुपूर्वी एकदो तीन आदि को किसी क्रम से गिनना गणनानुपूर्वी है। (8) संस्थानानुपूर्वी- जीव और अजीवों की रचना विशेष को संस्थान कहते हैं। समचतुरस्त्र आदि संस्थानों के क्रम को संस्थानानुपूर्वी कहते हैं। (8) समाचार्यनुपूर्वी-शिष्ट अर्थात् साधुओं के द्वारा किए गए क्रियाकलाप को समाचार्यनुपूर्वी कहते हैं। (10) भावानुपूर्वी-औदयिक आदि परिणामों को भाव कहते हैं। उनका क्रम अथवा परिपाटी भावानुपूर्वी कहा जाता है। इन आनुपूर्वियों के भेद प्रभेद तथा स्वरूप विस्तार के साथ अनुयोगद्वार सूत्र में दिए गए हैं। (अनुयोग द्वार मूत्र 71-120) 618- द्रव्यानुयोग दस सूत्र का अर्थ के साथ ठीक ठीक सम्बन्ध बैठाना मनुयोग कहलाता है / इस के चार भेद हैं- चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग / चरण करण अर्थात् साधुधर्म और श्रावकधर्म का प्रतिपादन