________________ मी सेठिया जैन ग्रन्थमाला * यानि अतिशय ज्ञान रहित छनस्थ सर्व भाव से इन बातों को जानता देखता नहीं है। यहाँ पर अतिशय ज्ञान रहित विशेषण देने का यह अभिप्राय है कि अवधि ज्ञानी छमस्थ होते हुए भी अतिशय ज्ञानी होने के कारण परमाणु आदि को यथार्थ रूप से जानता और देखता है किन्तु अतिशय ज्ञान रहित छमस्थ नहीं जान या देख सकता। वे दस बोल ये हैं (१)धर्मास्तिकाय (२)अधर्मास्तिकाय(३) भाकाशास्तिकाय (4) वायु (5) शरीर रहित जीव (6) परमाणु पुद्गल (7) शब्द (8) गन्ध (E) यह पुरुष प्रत्यक्ष ज्ञानशाली केवली होगा या नहीं (10) यह पुरुष सर्व दुःखों का अन्त कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होगा या नहीं। इन दस बातों को निरतिशय ज्ञानी छमस्थ सर्व भाव से न जानता है और न देख सकता है किन्तु केवल ज्ञान और केवल दर्शन के धारक अरिहन्त जिन केवली उपरोक्त दस ही बातों को सर्व भाव से जानते और देखते हैं। (ठाणांग, सूत्र 744 ) (भगवती शतक 8 उद्देशा 2 ) ७१७-आनुपूर्वी दस क्रम, परिपाटी या पूर्वापरीभाव को भावपूर्वी कहते हैं। कम से कम तीन वस्तुओं में ही आनुपूर्वी होती है। एक या दो वस्तुओं में प्रथम मध्यम और अन्तिम का क्रम नहीं हो सकता इसलिए वे प्रानुपूर्वी के अन्तर्गत नहीं हैं। मानुपूर्वी के दस भेद हैं-- (1) नामानुपूर्वी- गुणों की अपेक्षा बिना किए सजीव या निर्जीव वस्तु का नाम भानुपूर्वी होना नामानुपूर्वी है। (2) स्थापनानुपूर्वी-मानुपूर्वी के सदृश आकार वाले या किसी दूसरे आकार वाले चित्र प्रादि में भानुपूर्वी की स्थापना करना अर्थात् उसे भानुपूर्वी मान लेना स्थापनापूर्वी है।