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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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(८) संघ का विनय । (६) धार्मिक क्रिया का विनय । (१०) साधर्मिक का विनय ।
नोट- भगवती सूत्र में दर्शन विनय के दो भेद बताए हैंशुश्रूषा विनय और अनाशातना विनय । शुश्रूषा विनय के अनेक भेद हैं। अनाशातना विनय के पैंतालीस भेद हैं। ऊपर के दस तथा पाँच ज्ञान, इन पन्द्रह बोलों की (१)अनाशातना (२) भक्ति और (३) बहुमान, इस प्रकार प्रत्येक के तीन भेद होने से पैंतालीस हो जाते हैं। दर्शनविनय के दस भेद भी प्रसिद्ध होने के कारण दसवें बोल संग्रह में ले लिए गए हैं और यहाँ दस ही बताए गए हैं।
(भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशा ७) ७१०-संबर दस
इन्द्रिय और योगों की अशुभ प्रवृत्ति से आते हुए कर्मों को रोकना संवर है। इसके दस भेद हैं
(१) श्रोत्रेन्द्रियसंवर (२) चक्षुरिन्द्रियसंवर-(३) प्राणेन्द्रियसंबर (४) रसनेन्द्रियसंवर (५) स्पर्शनेन्द्रियसंवर (६) मनसंघर (७) वचनसंवर(८) कायसंवर () उपकरणसंवर (१०) सूचीकुशाग्रसंवर । .. पाँच इन्द्रियाँ और तीन योगों की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा उन्हें शुभ व्यापार में लगाना क्रम से श्रोत्रेन्द्रिय बमैरह पाठ संवर हैं। (8) उपकरणसंवर-जिन वस्त्रों के पहनने में हिंसा हो अथवा जो वस्त्रादि न कल्पते हों, उन्हें न लेना उपकरण संवर है। अथवा बिखरे हुए वस्त्रादि को समेट कर रखना उपकरणसंवर है। यह उपकरणसंवर समग्र औधिक उपधि की अपेक्षा कहा गया है ।जो वस्त्र पात्रादि उपधि एक बार ग्रहण करके वापिस