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श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह
तक ब्रह्मचारी को उस आसन या जगह पर न बैठना चाहिये। घी के घड़े को अग्नि का दृष्टान्त । (४) स्त्रियों के मनोहर और मनोरम (मुन्दर) अङ्ग प्रत्यङ्गों को आसक्तिपूर्वक न देखे । कारी कराई हुई कच्ची आँख को सूर्य का दृष्टान्त । ( ५ ) वाँस आदि की टाटी, भीत और वस्त्र (पर्दा) आदि के अन्दर होने वाले स्त्रियों के विषयोत्पादक शब्द, रोने के शब्द, गीत, हँसी, आक्रन्द और विलाप आदि के शब्दों को न सुने । मोर को बादल की गर्जना का दृष्टान्त । (६) पहले भोगे हुए काम भोगों का स्मरण न करे। मुसाफिरों को बुढ़ियाकी छाछ का दृष्टान्त । (७) प्रणीत भोजन न करे अर्थात् जिसमें से घी की बूंदें टपक रही हों ऐसा सरस और काम को उत्तेजित करने वाला आहार ब्रह्मचारी को न करना चाहिए । सन्निपात के रोगीको दृध मिश्री के भोजन का दृष्टान्त। (८) शास्त्र में बतलाए हुए परिमाण से अधिक आहार न करे। शास्त्र में पुरुष के लिए ३२ कवल और स्त्री के लिए २८ कवल आहार का परिमाण बतलाया गया है। जीर्णकोथली का दृष्टान्त। (8) स्नान मंजन आदि करके अपने शरीर को अलंकृत न करे। अलंकृत शरीर वाला पुरुष स्त्रियों द्वारा प्रार्थनीय होता है। जिससे ब्रह्मचर्य भङ्ग होने की सम्भावना रहती है । रंक के हाथ में गए हुए रत्न का दृष्टान्त । (१०) सुन्दर शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में प्रासक्त न बने ।
उपरोक्त बातों का पालन करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। इसी लिए ये ब्रह्मचर्य के समाधि स्थान कहे जाते हैं।
(उत्तराध्ययन अध्ययन ८६)