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श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला
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७०२- क्रोध कषाय के दस नाम ___ (१) क्रोध (२) कोप (३) रोष (४) दोष (५) अक्षमा (६) संज्वलन (७) कलह (८) चाण्डिक्य (6) भंडन (१०) विवाद।
(समवायांग, समवाय ५२) ७०३- अहंकार के दस कारण
दस कारणों से अहङ्कार की उत्पत्ति होती है। वे ये हैं(१) जातिमद (२) कुलमद (३) बलमद (४) श्रुतमद (५) ऐश्वर्य •मद (६) रूप मद (७) तप मद (८)लब्धि मद । (६) नागसुवर्णमद (१०) अवधि ज्ञान दर्शन मद ।
मेरी जाति सब जातियों से उत्तम है । मैं श्रेष्ठ जाति वाला हूँ। जाति में मेरी बराबरी करने वाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है। इस प्रकार जाति का मद करना जातिमद कहलाता है । इसी तरह कुल, बल आदि मदों के लिए भी समझ लेना चाहिए। (8)नाग सुवर्ण मद-मेरे पास नाम कुमार, सुवर्णकुमार आदि जाति के देव आते हैं। मैं कितना तेजस्वी हूँ कि देवता भी मेरी सेवा करते हैं। इस प्रकार मद करना।। (१०) अवधिज्ञान दर्शन मद-मनुष्यों को सामान्यतः जो अवधि ज्ञान और अवधि दर्शन उत्पन्न होता है उससे मुझे अत्यधिक विशेष ज्ञान उत्पन्न हुआ है। मेरे से अधिक अवधिज्ञान किसी भी मनुष्यादि को हो नहीं सकता। इस प्रकार से अवधिज्ञान और अवधि दर्शन का मद करना।
इस भव में जिस बात का मद किया जायगा, आगामी भव में वह प्राणी उस बात में हीनता को प्राप्त करेगा। अतः आत्मार्थी पुरुषों को किसी प्रकार का मद नहीं करना चाहिए ।
(ठाणांग, सूत्र १०)