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भी सेठिया जैन प्रन्यमाना
(५) प्रेमनिःसृत-- अत्यन्त प्रेम में निकला हुआ असत्य वचन ।' जैसे प्रेम में आकर कोई कहता है- मैं तो आप का दास हूँ। (६) द्वेषनिःसृत-द्वेष से निकला हुआ वचन । जैसे द्वेष में आकर किसी गुणी को भी निर्गण कह देना। (७) हासनिःसृत- हँसी में झूठ बोलना। . (८) भयनिःसृत--चोर वगैरह से डर कर असत्य वचन बोलना। (6) आख्यायिकानिःमृत-- कहानी वगैरह कहते समय उस . में गप्प लगाना। (१०) उपघातनिःसृत-- माणियों की हिंसा के लिए बोला गया ... असत्य वचन । जैसे भले आदमी को भी चोर कह देना। ( ठाणांग, सूत्र ७४१ ) (पन्नवणा पद ११) (धर्मसंग्रह अधिकार ३ गाथा ४१ की टीका) ७०१- ब्रह्मचर्य के दस समाधिस्थान
ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए ब्रह्मचर्य के दस समाधिस्थान बतलाये गये हैं। वे ये हैं(१) जिस स्थान में स्त्री, पशु और नपुंसक रहते हों ऐसे स्थान में ब्रह्मचारी को न रहना चाहिये। ऐसे स्थान में रहने से ब्रह्मचारी के हृदय में शंका, कांक्षा और विचिकित्सा आदि दोष उत्पन्न हो सकते हैं तथा चारित्र का विनाश, उन्माद और दाहज्वर । आदि भयङ्कर रोगों की उत्पत्ति होने की संभावना रहती है।
अतिक्लिष्ट कर्मों के उदय से कोई कोई व्यक्ति केवलिप्ररूपित श्रुत चारित्र रूपी धर्म से गिर जाता है अर्थात् वह धर्म को ही छोड़ देता है । चूहे को बिल्ली का दृष्टान्त । (२) स्त्री सम्बन्धी कथा न करे अर्थात् स्त्रियों की जाति, रूप कुल आदि की कथा न करे । निम्बू का दृष्टान्त । (३) स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे | जिस आसन या जिस जगह पर स्त्री बैठी हो उसके उठ जाने पर एक मुहूर्त
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