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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(५) अजीवमिश्रिता - उसी राशि को अजीवों का ढेर बताना। (६) जीवाजीवमिश्रिता - उसी राशि में प्रयथार्थ रूप से यह बताना कि इतने जीव हैं और इतने अजीव ।
(७) अनन्तमिश्रिता - अनन्तकायिक तथा प्रत्येकशरीरी वनस्पति काय के ढेर को देख कर कहना कि यह अनन्तकाय का ढेर है। (८) प्रत्येकमिश्रिता - उसी ढेर को कहना कि यह प्रत्येक वनस्पति काय का ढेर है ।
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( 8 ) अद्धा मिश्रिता - दिन या रात वगैरह काल के विषय में मिश्रित वाक्य बोलना । जैसे जल्दी के कारण कोई दिन रहते कहे - उठो रात होगई । अथवा रात रहते कहे, सूरज निकल आया । (१०) श्रद्धाद्धामिश्रिता- दिन या रात के एक भाग को श्रद्धाद्धा कहते हैं । उन दोनों के लिए मिश्रित वचन बोलना अद्धादा मिश्रिता है जैसे जल्दी करने वाला कोई मनुष्य दिन के पहले पहर में भी कहे, दोपहर हो गया ।
( पत्रवणा भाषापद ११ ) (ठाणांग, सूत्र ७४१ ) ( धर्मसंग्रह अधिकार ३ गाथा ४१ की टीका ) मृषावाद दस प्रकार का
असत्यवचन को मृषावाद कहते हैं । इस के दस भेद हैं(१) क्रोधनिःसृत - जो असत्य वचन क्रोध में बोला जाय । जैसे क्रोध में कोई दूसरे को दास न होने पर भी दास कह देता है । ( २ ) माननिःसृत-मान अर्थात् घमण्ड में बोला हुआ वचन । जैसे घमण्ड में आकर कोई गरीब भी अपने को धनवान् कहने लगता है। ( ३ ) मायानिःसृत-- कपट से अर्थात् दूसरे को धोखा देने के लिए बोला हुआ झूठ |
(४) लोभनिःसृत - लोभ में आकर बोला हुआ वचन, जैसे कोई दुकानदार थोड़ी कीमत में खरीदी हुई वस्तु को अधिक कीमत की बता देता है ।
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