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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
कहना। रास्ते के स्थिर होने पर भी कहना, यह मार्ग अमुक नगर को जाता है। गाड़ी के पहुँचने पर भी कहना कि गांव आगया। (८) भावसत्य-निश्चय की अपेक्षा कई बातें होने पर भी किसी एक की अपेक्षा से उसमें वही बताना । जैसे तोते में कई रंग होने पर भी उसे हरा कहना। (६) योगसत्य- किसी चीज के सम्बन्ध से व्यक्ति विशेष को उस नाम से पुकारना । जैसे- लकड़ी ढोने वाले को लकड़ी के नाम से पुकारना। (१०) उपमासत्य-किसी बात के समान होने पर एक वस्तु की दूसरी से तुलना करना और उसे उस नाम से पुकारना ।
(ठाणांग, सूत्र ७४१) (पनवणा सूत्र भाषापद ११)
. (धर्मसंग्रह अधिकार ३ गाथा ४१ की टीका) ६६६-सेत्यामृषा (मिश्र) भाषा के दस प्रकार __ जिस भाषा में कुछ अंश सत्य तथा कुछ असत्य हो उसे सत्यामृषा (मिश्र) भाषा कहते हैं । इसके दस भेद हैं(१) उत्पन्नमिश्रिता- संख्या पूरी करने के लिए नहीं उत्पन्न हुओं के साथ उत्पन्न हुओं को मिला देना । जैसे-किसी गाँव में कम या अधिक बालक उत्पन्न होने पर भी 'दस बालक उत्पन्न हुए' यह कहना। . (२) विगतमिश्रिता- इसी प्रकार मरण के विषय में कहना। (६) उत्पन्नविगतमिश्रिता- जन्म और मृत्यु दोनों के विषय में अयथार्थ कथन । (४)जीवमिश्रिता-जीवित तथा मरे हुए बहुत से शंख आदि के ढेर को देख कर यह कहना अहो ! यह कितना बड़ा जीवों का ढेर है। जीवितों को लेकर सत्य तथा मरे हुओं को लेने से असत्य होने के कारण यह भाषा सत्यामृषा है ।