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को जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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वस्तुएं उत्पन्न होती हैं, फिर भी शब्द शास्त्र के विद्वानों ने पङ्कज शब्द का अर्थ सिर्फ कमल मान लिया है। इस लिएपंकज शब्द से कमल ही लिया जाता है मेंढक आदि नहीं। यह सम्मत सत्य है। (३) स्थापनासत्य-- सदृश या विसदृश आकार वाली वस्तु में किसी की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना सत्य है। जैसे-शतरंज के मोहरों को हाथी, घोड़ा आदि कहना। अथवा 'क' इस आकार विशेष को क कहना। वास्तव में क आदि वर्ण ध्वनिरूप हैं। पुस्तक के अक्षरों में उस ध्वनि की स्थापना की जाती है, अथवा प्राचारांग आदि श्रुत ज्ञान रूप है, लिखे हुए शास्त्रों में उन की स्थापना की जाती है। जम्बूद्वीप के नकशे को जम्बूद्वीप कहना सदृश आकार वाले में स्थापना है। (४) नामसत्य-गुण न होने पर भी व्यक्ति विशेष का या वस्तु विशेष का वैसा नाम रख कर उस नाम से पुकारना नामसत्य है। जैसे- किसी ने अपने लड़के का नाम कुलवर्द्धन रक्खा, लेकिन उसके पैदा होने के बाद कुल का हास होने लगा। फिर भी उसे कुलबद्धेन कहना नामसत्य है। अथवा अमरावती देवों की नगरी का नाम है। वैसी बातें न होने पर भी किसी गाँव को अमरावती कहना नाम सत्य है । (५) रूपसत्य-वास्तविकता न होने पर भी रूप विशेष को धारण करने से किसी व्यक्ति या वस्तु को उस नाम से पुकारना। जैसेसाधु के गुण न होने पर भी साधु वेश वाले पुरुष को साधु कहना। (६) प्रतीतसत्य अर्थात् अपेक्षासत्य- किसी अपेक्षा से दूसरी वस्तु को छोटी बड़ी आदि कहना अपेक्षासत्य या प्रतीतसत्य है। जैसे मध्यमा अंगुली की अपेक्षा अनामिका को छोटी कहना। (७) व्यवहारसत्य-जो बात व्यवहार में बोली जाती है। जैसेपर्वत पर पड़ी हुई लकड़ियों के जलने पर भी पर्वत जलता है, यह