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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
वा' यहाँ मकार निषेध अर्थ में प्रयुक्त है। 'जेणामेव सपणे भगवं महावीरेतेणामेव ' यहाँ मकार का प्रयोग सौन्दर्य के लिए ही किया गया है। 'जेणेव' करने से भीवही अर्थ निकल जाता है। (३) अपि- इसका प्राकृत में पि हो जाता है । इसके अर्थ है सम्भावना, निवृत्ति, अपेक्षा, समुच्चय, गर्दा, शिष्यामर्षण, भूषण और प्रश्न । जैसे- ‘एवं पि एगे आसासे' यहाँ पर अपि शब्द प्रकारान्तर के समुच्चय के लिए हैं और बताता हैं, 'इस प्रकार भी और दूसरी तरह से भी। (४) सेयंकार- से शब्द का प्रयोग अथ के लिए किया जाता है। अथ का प्रयोग प्रक्रिया (नए प्रकरण या ग्रन्थ का प्रारम्भ करना), प्रश्न, आनन्तर्य (इस प्रकरण के बाद अमुक शुरू किया जाता है), मंगल, प्रतिवचन (हाँ का उत्तर देना, जैसे नाटकों में आता है, अथ किम् ! ) और समुच्चय के लिए होता है । 'वह' और 'उसके अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है। .. अथवा इसकी संस्कृत श्रेयस्कर है। इसका अर्थ है कल्याण
जैसे- सेयं मे अहिज्झिउं अज्झयणं । - - सेय शब्द का अर्थ भविष्यकाल भी है जैसे- 'सेयं काले. अकम्मेवावि भवई यहाँ पर सेय शब्द का अर्थ भविष्यकाल है। (५) सायंकार- सायं का अर्थ है सत्य । तथावचन, सद्भाव
और प्रश्न इन तीन अर्थों में इसका प्रयोग होता है। (६) एकत्व - बहुत सी बातें जहाँ मिल कर किसी एक वस्तु के पति कारण हों वहाँ एक वचन का प्रयोग होता है। जैसे ,सम्यम् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः' यहाँ अगर 'मार्गाः 'बहुवचन कर दिया जाता तो इसका अर्थ हो जाता ज्ञान, दर्शन और चारित्र अलग अलग मोक्ष के मार्ग हैं। ये तीनों मिल कर मोक्ष का मार्ग हैं, अलग अलग नहीं,यह बताने के लिए मार्गएकवचन कहा गया है।