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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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खकाय शख है। पृथ्वीकाय अप्कायादि की अपेक्षा परकाय शस्त्र है। (२) विष- स्थावर और जंगम के भेद से विष दो प्रकार का है। (३) लवण-नमक (४) स्नेह- तैल घीआदि। (५) खार। (६) अम्ल-काजी अर्थात् एक प्रकार का खट्टा रस जिसे हरे शाक वगैरह में डालने से वह अचित्त हो जाता है । ये छः द्रव्य शस्त्र हैं। आगे के चार भाव शस्त्र हैं। वे इस प्रकार हैं- (७) दुष्पयुक्त मन (८) दुष्पयुक्त वचन (६) दुष्पयुक्त शरीर। (१०) अविरति- किसी प्रकार का प्रत्याख्यान न करना अप्रत्याख्यान या अविरति कहलाता है । यह भी एक प्रकार का शस्त्र है।
(ठाणांग, सूत्र ७४३) ६६७-शुद्ध वागनुयोग के दस प्रकार ___ वाक्य में आए हुए जिन पदों का वाक्यार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है उसे शुद्धवाक् कहते हैं। जैसे 'इथिओ सयणाणि य' यहाँ पर 'य'। इस प्रकार के शुद्धवाक् का प्रयोग शास्त्रों में बहुत स्थानों पर आता है। उसका अनुयोग अर्थात् वाक्यार्थ के साथ सम्बन्ध का विचार दस प्रकार से होता है । यद्यपि उन के बिना वाक्य का अर्थ करने में कोई बाधा नहीं पड़ती, किन्तु वे वाक्य के अर्थ को व्यवस्थित करते हैं। वे दस प्रकार से
प्रयुक्त होते हैं..
(१) चकार- प्राकृत में 'च' की जगह 'य' आता है। समाहार इतरेतरयोग, समुच्चय, अन्वाचय, अवधारण, पादपूरण और अधिक वचन वगैरह में इसका प्रयोग होता है । जैसे-'इथिओ सयणाणि य' यहाँ पर स्त्रियाँ और शयन इस अर्थ में 'च' समुच्चय के लिए है अर्थाद दोनों के अपरिभोग को समान रूप से बताने के लिए कहा गया है। (२) मकार- 'मा' का अर्थ है निषेध जैसे 'समणं वा माहणं